फिल्म प्रेमियों का तीर्थ भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह
- प्रदीप सरदाना वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक जब महान शक्तियाँ एक दूसरे पर दुनिया को परमाणु युद्द के कगार पर धकेलने का आरोप लगा रही हैं। इस तरह के युद्द में हम आकाश को काला करने , हवा को जहरीला और पृथ्वी को प्रदूषित करने की कोशिश कर रहे हैं। तब भारत में दुनिया के महान देशों के प्रतिनिधि किसी भी तरह के युद्द संबंधी उपाय के उद्देश्य से नहीं बल्कि आपसी समझ को बढ़ावा देने के उदेश्य से मिल रहे हैं। फिल्मों को हमारे देश में राष्ट्रीय एकता और विश्व एकता के उद्देश्य से उपयोग किया जा सकता है। उपरोक्त पंक्तियाँ देश के उपराष्ट्रपति के रूप में डॉ एस राधाकृष्णन ने 27 अक्तूबर 1961 को अपने सम्बोधन में तब कहीं थीं , जब वह नई दिल्ली में दूसरे भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह का उदद्घाटन कर रहे थे। आज इस बात को 61 बरस बीत गए हैं। लेकिन आज भी रूस-यूक्रेन युद्द के कारण परिस्थितियाँ कुछ वैसी ही हैं। इधर हमारे यहाँ गोवा में अब 53 वां भारतीय अंतरराष्ट्रीय समारोह भी आयोजित हो रहा है। जिसके लिए दुनिया भर के बहुत से प्रतिनिधि देश में फिर एकत्र हुए हैं। फिल्मों के माध्यम से प्रेम , सौहार्द , परस्पर