आवारा हूँ ....विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय हिन्दी गीत है
सदाबहार मुकेश की पुण्यतिथि पर विशेष
- प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक
इस 27 अगस्त को सदाबहार पार्श्व गायक मुकेश को
दुनिया को अलविदा कहे 46 बरस हो गए। लेकिन उनके गाये गीत आज
भी दिल-ओ-दिमाग में गहराइयों तक उतरे हुए हैं। नयी पीढ़ी के लोग भी मुकेश के गीतों
को जिस तरह पसंद करते हैं उससे वह देश के चुनिन्दा सदाबहार पार्श्व गायकों में आते
हैं। उन्हें अपने गीत ‘कई बार यूं ही देखा है’ के लिए जहां सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। वहाँ कभी
कभी मेरे दिल में, जय बोलो बेईमान की, सबसे
बड़ा नादान वही है और सब कुछ सीखा हमने, गीतों के लिए 4 बार
फिल्मफेयर भी मिला।
यूं अपने 35 वर्षों के करियर में मुकेश ने 525 फिल्मों में करीब 900 गीत गाये। जीना यहाँ मरना यहाँ, जाने कहाँ गए वो दिन, सुहानी चाँदनी रातें, मेरा जूता है जापानी, सावन का महीना, एक दिन बिक जाएगा, जब कोई तुम्हारा हृदय तोड़ दे, दोस्त दोस्त न रहा और चाँद सी महबूबा हो मेरी जैसे कितने ही मुकेश के गीत
आज भी खूब लोकप्रिय हैं।
यूं तो हम जहां हमेशा मुकेश के गीतों को सुनते-गुनगुनाते और गाते रहते हैं। वहाँ उनकी पुण्यतिथि और जन्म दिवस पर तो विशेष रूप से याद करते हैं। लेकिन यह बरस मुकेश के लिए और भी खास है। क्योंकि यह मुकेश का जन्म शताब्दी वर्ष है। इसलिए इस बार सालभर उन्हें बारं बार याद किया जाता रहेगा।
दिल्ली में 22 जुलाई 1923 को जन्मे मुकेश चंद माथुर
दसवीं पास करने के बाद एक सरकारी नौकरी करने लगे थे। लेकिन उनकी बहन सुंदर प्यारी
के विवाह में जब दिग्गज अभिनेता मोती लाल ने मुकेश में गायन की अच्छी प्रतिभा देखी तो उन्होंने मुकेश को मुंबई बुला
लिया। सिर्फ 18 साल की उम्र में मुकेश को फिल्मों में गायन के साथ अभिनय के मौके
मिलने लगे थे। लेकिन मुकेश को पहचान मिली,1945 में आई फिल्म
‘पहली नज़र’ के गीत ‘दिल जलता है तो जलने दो’ से।
इसके बाद 1946 में अपने 23 वें जन्म दिन पर मुकेश
ने सरल त्रिवेदी से शादी भी कर ली। उधर मुकेश को गायक के रूप में बड़ी लोकप्रियता, राज कपूर की फिल्म ‘बरसात’(1949) के गानों से मिली। इसी के बाद वह राज कपूर के गीतों की स्थायी आवाज़ बन गए, उनके पक्के दोस्त बन गए। मुकेश का जब अपनी एक संगीत यात्रा के दौरान अमेरिका
के डेट्रायट में जब 27 अगस्त 1976 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ तो राज कपूर ने
कहा था-‘’मेरी तो आजाज ही चली गयी।‘’
बता दें सन 1951 में प्रदर्शित राज कपूर की फिल्म ‘आवारा’ में मुकेश का गाया शीर्षक गीत ‘आवारा हूँ’ देश का ऐसा पहला गीत था, जिसने देश की सरहदें पार करते हुए दुनिया के कई देशों में धूम मचा दी थी।
रूस में तो यह गीत आज भी इतना लोकप्रिय है कि वहाँ पहुंचे भारतीय पर्यटकों को देख
रूस के कितने ही नागरिक –‘आवारा हूँ,
आवारा हूँ’ करने लगते हैं।
मुकेश के पुत्र और जाने माने गायक नितिन मुकेश से
जब मैंने ‘आवारा हूँ’’ गीत को लेकर
बात की तो उन्होने बताया-‘’आवारा हूँ,
विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय हिन्दी गीत है। रूस, चीन, तुर्की, उज्बेकिस्तान और ग्रीस सहित 15 ऐसे देश हैं, जिन्होंने अपनी-अपनी भाषा में इस गीत का अनुवाद तक किया है। आज भी उन सब
देशों में यह उतने ही चाव से गाया और सुना जाता है, जितना
बरसों पहले सुना जाता था।‘’
भारत
के प्रथम वैश्विक गायक मुकेश
उधर भारत सरकार के प्रकाशन विभाग ने मुकेश पर हाल
ही में एक अच्छी पुस्तक –‘भारत के प्रथम वैश्विक गायक-मुकेश’ का प्रकाशन किया है। जिसके लेखक फिल्म संगीत के बड़े जानकार राजीव
श्रीवास्तव हैं। जो बरसों से फिल्म संगीत के इतिहास को समेटने में तल्लीन हैं।
मुकेश पर राजीव एक पुस्तक पहले भी लिख चुके हैं। पिछले दिनों फिल्म संगीत पर उनकी
पुस्तक ‘सात सुरों का मेला’ भी अच्छी ख़ासी
चर्चा में रही।
‘भारत के प्रथम वैश्विक गायक मुकेश’, मुकेश के जन्मशती वर्ष का पहला पुष्प है। इस पुस्तक की बड़ी बात यह भी है
कि इसकी प्रस्तावना दिग्गज संगीतकार ख्य्याम लिख कर गए थे। फिर प्रकाशन विभाग ने
इस पुस्तक को भव्यता से प्रकाशित किया है। इसके सभी लगभग 300 पृष्ठ रंगीन हैं।
उधर ख्य्याम और मुकेश का बरसों गहरा रिश्ता रहा।
ख्य्याम ने पहली बार 1958 में फिल्म ‘फिर सुबह होगी’ के लिए मुकेश से दो एकल और तीन युगल गीत गवाए था। लेकिन सन 1976 में आई
फिल्म ‘कभी कभी’ में ख्य्याम के
निर्देशन में मुकेश के गाये ‘कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता
है’ और ‘मैं पल दो पल का शायर हूँ’’ जैसे गीत तो फिल्म संगीत के सुनहरे पन्नों पर दर्ज होकर कालजयी बन गए
हैं।
पुस्तक में मुकेश के जन्म से उनकी मृत्यु तक दिल
छूने वाले कई प्रसंगों के साथ मुकेश की संगीत यात्रा पर तो काफी कुछ है ही। साथ ही
राज कपूर,लता मंगेशकर,शंकर जयकिशन,शैलेंद्र,मनोज कुमार,किशोर कुमार,रफी और
मन्ना डे जैसे कितने संगी साथियों के साथ उनके रिश्तों को विभिन्न रूपों में बताया
गया है। फिर मुकेश और उनके पूरे परिवार के साथ उनके गीतों का पूरा लेखा जोखा भी इस
पुस्तक में है।
(प्रसिद्ध समाचार पत्र ‘स्वदेश’ में 28 अगस्त 2022 को सभी
संस्करणों में प्रकाशित मेरा लेख)
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