छोटी ज़िंदगी का बड़ा अफसाना रोहित सरदाना
- प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक
बड़े शौक से सुन रहा था ज़माना
तुम्हीं
सो गए दास्तां कहते कहते
गत 30 अप्रैल को जब रोहित
सरदाना के निधन का झकझोर देने वाला समाचार मिला, तब
उपरोक्त पंक्तियाँ सहसा मुख से निकल पड़ीं।
टीवी न्यूज़ चैनल्स की
चकाचौंध की दुनिया में यूं तो कुछ और भी अच्छे एंकर्स हैं। लेकिन रोहित ने पिछले करीब
7 बरसों में अपनी कर्मठता और योग्यता के बल पर अच्छे एंकर्स के बीच में भी, अपनी जो विशिष्ट पहचान बनाई वह बेमिसाल है।
यूं तो रोहित ने अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत सन 2000 में ही कर दी थी। लेकिन उनकी बड़ी लोकप्रियता की शुरुआत हुई 2013 से जब ज़ी न्यूज़ पर रोहित का डिबेट शो ‘ताल ठोक के’ शुरू हुआ। एक अलग रंग और एक अलग तेवर वाले इस शो को रोहित सरदाना ने अपनी तर्क शक्ति और अपने अंदाज़ से एक ऐसा शिखर दिया कि यह शो डिबेट का नंबर वन शो बन गया। इसी के साथ न्यूज़ चैनल्स के पत्रकारिता संसार को एक नया सितारा मिल गया। जैसे जैसे ‘ताल ठोक के’ आगे बढ़ता गया वैसे वैसे रोहित सरदाना की लोकप्रियता भी बढ़ती चली गयी। देखते देखते रोहित ‘स्टार जर्नलिस्ट’ बन गए। साथ ही रोहित और ‘ताल ठोक के’ की जबर्दस्त सफलता ने अन्य न्यूज़ चैनल्स के डिबेट शो की भी दशा और दिशा दोनों बदल दीं। इससे पहले डिबेट शो में इतनी गर्मजोशी और तल्खीयत नहीं होती थी। लेकिन रोहित ने अपने तेवर और सटीक तर्कों के साथ अपने शो को तीखापन दिया तो संजीदगी और गरिमा भी। साथ ही अपने इस शो को रोहित ने राष्ट्रवादी रंग देकर दुनिया को यह बता दिया कि उनके लिए देश सर्वोच्च है। जो भी देश को बांटने–तोड़ने और बदनाम करने के भाव रखेगा उसे बक्शा नहीं जाएगा।
बचपन से ही था कुछ करने का जज़्बा
रोहित एक ऐसे व्यक्ति थे
जिन्होंने अपने बचपन में ही बड़े बड़े सपने देखने शुरू कर दिये थे। हालांकि बचपन से
जवानी की पहली दहलीज तक रोहित यह फैसला कर पाने में कुछ असमंजस में थे कि वह किस
करियर को अपनाएं। लेकिन वह अपनी बातचीत में अक्सर बताते थे-''एक बात तय थी कि मैं ज़िंदगी में कुछ ऐसा करूंगा जहां मेरी अपनी पहचान बने।
राह चलते लोग मुझे पहचानें, और मुझे लोकप्रियता मिले।''
जब देखा अभिनेता बनने का सपना
कॉलेज में रंगमंच करते हुए
रोहित का मन अभिनय की दुनिया में रमने लगा। इसके लिए रोहित ने पहले आकाशवाणी रोहतक
से स्वर परीक्षा पास कर रेडियो के लिए नाटक करने शुरू किए। लेकिन स्नातक की पढ़ाई
पूरी करने के बाद रोहित ने दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में दाखिले का मन
बनाया। हालांकि अपने इस फैसले को जब रोहित ने अपने बड़े भाई कम्प्यूटर इंजीनियर
ललित को बताया तो उन्हें रोहित का यह फैसला पसंद नहीं आया। ललित का कहना था –"भांड बनने से अच्छा है आगे पढ़ाई करके इंजीनियर बन जाओ।" फिर भी रोहित ने दिल्ली जाकर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की प्रवेश परीक्षा
के आरंभिक चरण पास करने के बाद, वहाँ की एक सप्ताह की कार्यशाला
में हिस्सा लिया। लेकिन तीसरे ही दिन रोहित का मन वहाँ से उचाट हो गया और वह
कार्यशाला बीच में छोड़कर कुरुक्षेत्र लौट आ आए। रोहित बताते थे- ‘’मुझे यह जल्द ही अहसास हो गया कि अपने छोटे कद-काठी के चलते मैं फिल्मों
या सीरियल में हीरो तो बनने से रहा। फिल्म-टीवी पर छोटी छोटी भूमिकाओं या भीड़ का
हिस्सा बनने की जगह, न्यूज़ चैनल्स के माध्यम से टीवी पर आया
जाये तो बेहतर रहेगा।"
अपने इस नए सपने को पूरा
करने के लिए रोहित ने सबसे पहले अपनी बोलचाल की भाषा से हरियाणवी टच दूर करने के
साथ, हिन्दी और अँग्रेजी दोनों भाषाओं में दक्षता हासिल करने पर ध्यान दिया।
पत्र-पत्रिकाओं में लिखना शुरू किया। रेडियो के कुछ कार्यक्रम किए। उसके बाद
जनसंचार में मास्टर डिग्री की पढ़ाई के लिए रोहित ने गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय
में दाखिला लेकर, हिसार के लिए प्रस्थान किया।
हिसार से हुई सफलता की शुरुआत
अपनी जनसंचार की पढ़ाई के
दौरान ही सन 2000 के दौर में ही रोहित सरदाना की सफलता की शुरुआत हो गयी। अपनी
पढ़ाई के पहले साल में ही रोहित को रेडियो हिसार से एफएम चैनल में दोपहर बाद से रात
तक काम करने और फिल्म गीतों का एक कार्यक्रम होस्ट करने का मौका मिल गया। कुछ दिन
बाद सिटी केबल ने भी रोहित को अपना एक शो दे दिया। इससे रोहित पढ़ाई के दौरान ही
अपने कॉलेज और हिसार में ‘स्टार’ बन गए।
उधर अपनी पढ़ाई पूरी होने से 6 महीने पहले अपनी इंटर्नशिप के लिए रोहित को दिल्ली
में चैनल ईटीवी नेटवर्क में आना पड़ा। इंटर्न के दौरान ही ईटीवी ने रोहित को नौकरी
का प्रस्ताव दे दिया। तब रोहित ने अपने शिक्षक की सलाह पर नौकरी स्वीकार करने और रुके
हुए एक सत्र की परीक्षाएँ बाद में देने का फैसला किया। ईटीवी में नौकरी शुरू करने के
कुछ दिन बाद ही रोहित को प्रशिक्षण के लिए हैदराबाद भेज दिया। जहां 5 महीने में ही
रोहित ने प्रसारण की तकनीक और सम्पादन आदि में काफी कुछ सीख लिया। जब रोहित वापस
दिल्ली लौटे तो उनकी प्रतिभा, उत्साह और आत्मविश्वास देख
चैनल प्रमुख ने उन्हें पहली बार 5 मिनट का एक न्यूज़ बुलेटिन पढ़ने को दिया। उसके
बाद तो रोहित ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बक़ौल रोहित जब उन्होंने ईटीवी में
नौकरी शुरू की तब उनका वेतन 3200 रुपए था। लेकिन जब 2002 में ईटीवी छोड़ा, तब वह वेतन और न्यूज़ बुलेटिन के पारिश्रमिक के रूप में 72 हज़ार रुपए
अर्जित कर रहे थे।
सहारा में मिला जीवन संगिनी का सहारा
ईटीवी के बाद 2002 में
रोहित अपनी नई नियुक्ति पर सहारा चैनल में चले गए। वहीं रोहित की मुलाक़ात चैनल की
एक रिपोर्टर प्रमिला दीक्षित से हुई। जल्द ही मुलाक़ात दोस्ती और फिर प्रेम में बदल
गयी। हालांकि 2003 में प्रमिला ‘आजतक’ की
रिपोर्टर हो गईं। उधर रोहित भी 2004 में ज़ी टीवी पहुँच गए। यहाँ रोहित की ज़िंदगी
में जल्द ही एक बड़ा मोड़ तब आया जब उन्हें उनके बॉस ने एक दिन अचानक क्रिकेट के एक
कार्यक्रम में मेहमान कपिल देव का इंटरव्यू करने को कहा। तब तक रोहित को क्रिकेट
को लेकर रत्ती भर भी जानकारी नहीं थी। लेकिन रोहित ने जल्दी में एक अखबार में रवि
शास्त्री का स्तम्भ पढ़कर, कपिल देव का इंटरव्यू कर दिया।
कपिल देव को लगा इस मुंडे में दम है तो कपिल ने खुद ही चैनल को कहा कि यह शो इससे
ही क्यों नहीं कराते। बस क्या था ज़ी न्यूज़ के उस क्रिकेट शो ’एक्शन प्ले’ का होस्ट रोहित को बना दिया गया। जिसके
चलते रोहित ने दुनिया के कई देशों में जाकर क्रिकेट कवर करते हुए,करीब 8 साल तक यह शो किया।
‘ताल ठोक के’ और ‘दंगल’
‘एक्शन प्ले’ करते हुए रोहित ने अपने व्यक्तिगत जीवन में भी एक एक्शन यह लिया कि 29
जनवरी 2007 को उन्होंने प्रमिला से शादी कर ली। अब तक रोहित का चेहरा कुछ जाना
पहचाना हो गया था। साथ ही विभिन्न विषयों पर उनकी दिलचस्पी और गहन जानकारी ज़ी
न्यूज़ के उनके साथियों और बॉस लोगों को पसंद आने लगी थी। ऊपर से रोहित की सादगी, मिलनसार और प्रेमपूर्वक व्यवहार सोने पर सुहागा का काम कर रहा था। उसे
देख ज़ी न्यूज़ ने रोहित को ‘ताल ठोक के' दे दिया।
ज़ी न्यूज़ के संपादक और
अपने ‘डीएनए’ शो को होस्ट करते हुए टीवी पत्रकारिता के नए
शिखर पर पहुंचे सुधीर चौधरी ने भी रोहित के निधन पर उन्हें शिद्दत से याद करते हुए
अपनी भावभीनी श्रद्दांजलि दी है। सुधीर कहते हैं –''रोहित से
मेरी पहली मुलाक़ात 2012 में हुई थी। उनमें वाद-विवाद करने और तर्क रखने की विलक्षण
प्रतिभा थी। तब मैंने रोहित से कहा तुम्हें डिबेट शो होस्ट करना चाहिए। तुम इसी के
लिए बने हो। इसी के बाद 10 नवंबर 2013 को रोहित ने ‘ताल ठोक के’ की शुरुआत की। जो रोहित का ‘सिग्नेचर
शो’ बन गया। उधर जब कभी मैं अपना शो ‘डीएनए’ नहीं कर पाता था तो कुछेक बार रोहित ने मेरी जगह ‘डीएनए’ भो होस्ट किया।''
‘ताल ठोक के’ ने सफलता, लोकप्रियता का जो इतिहास रचा वह किसी से
छिपा नहीं है। इसके बाद रोहित ज़ी न्यूज़ छोड़कर ‘आज तक’ में कार्यकारी संपादक बनकर आ गए। जहां रोहित के पुराने तेवर और पुराने
अंदाज़ को देखते हुए उन्हें शुरू में ही 7 नवंबर 2017 में ‘दंगल’ शो दे दिया। ‘दंगल’ को होस्ट करते हुए रोहित पहले से और भी आगे निकल गए। रोहित ‘दंगल’ के साथ कभी रात 10 बजे ‘दस्तक’ भी करते थे और कभी ‘खबरदार’
या कोई और कार्यक्रम भी। इतना ही नहीं ग्राउंड ज़ीरो पर फील्ड रिपोर्टिंग करना भी
रोहित का जुनून था। ‘आज तक’ के विभिन्न
सम्मेलन, साहित्य आज तक और चुनावी विश्लेषण करते हुए रोहित
ने विभिन्न क्षेत्रों की कितनी ही हस्तियों के इंटरव्यू किए। हाल ही में रोहित के
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ किए गए इंटरव्यू
भी सुर्खियों में रहे। पिछले दिनों विधानसभा चुनावों के दौरान वह कोलकाता भी गए
थे। यहाँ तक 2 मई को ‘आजतक’ ने चुनावों
के सबसे तेज नतीजे की बड़ी बागडोर भी रोहित को ही सौंपी हुई थी। लेकिन 2 मई से दो
दिन पहले ही रोहित दुनिया से कूच कर गए।
एक खूबसूरत ज़िंदगी का अंत
रोहित सरदाना के दिन पर दिन ऊपर उठते करियर को मैं भी लगातार देखता रहा हूँ। मुझे रोहित की लोकप्रियता और गुणों को देख हमेशा उस पर गुमान होता था। कुछ टीवी डिबेटस में वह और मैं साथ भी रहे। वह हमेशा मुझे दिल से बहुत सम्मान देते हुए कहता था-"सर आपको पढ पढ़ कर मैं बड़ा हुआ हूँ।" हम व्हाट्सएप, फोन पर भी बात करते रहते थे। अभी रोहित के पिछले और अंतिम जन्म दिवस 22 सितंबर को मैंने रोहित को फोन किया तो उससे बात नहीं हो पाई। तब रोहित ने 23 सितंबर को मुझे व्हाट्सएप् करके कहा ‘’धन्यवाद सर, कल फोन, व्हाट्सएप सब जैसे हैंग ही हो गया था। बहुत से कॉल्स की वजह से। बल्कि आपका पिछला मैसेज भी आज देखा। मैं आपको फोन करता हूँ, फुर्सत में, तब बात करते हैं।’’
रोहित का अभी कुछ दिन पहले
फोन आया तो बोला –‘’सर क्या हुआ आजकल आप डिबेट में
नहीं आ रहे। किसी दिन आइये न बैठते हैं।‘’ गत 12 अप्रैल को
भी रोहित ने मेरी एक विशिष्ट उपलब्धि पर व्हाट्सएप पर संदेश देकर खुशी जताई। नहीं
जानता था कि यह उससे अंतिम बातचीत होगी।
चित्र- अपनी पत्नी और बेटियों के साथ रोहित
उधर रोहित का परिवार इतना गमगीन है कि वे समझ ही नहीं पा रहे कि अचानक यह सब क्या और कैसे हो गया ? उनके पिता रत्न चंद जी बताते हैं-"मेरा बेटा बहुत होनहार था, सहृदय था। हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता था। आज मेरी पहचान भी रोहित के पिता के रूप में होती है।"
रोहित के परिवार में एक ओर
उनके भाई ललित, हितेश और बहन हर्षा हैं। तो दूसरी ओर पत्नी
प्रमिला और दो छोटी छोटी बेटियाँ नंदिका और तनिष्का। रोहित अपने परिवार से, अपनी बच्चियों से बहुत प्यार करते थे। बेटियों को गायत्री मंत्र सीखाने
के साथ उनके खाने के लिए अक्सर अपने हाथ से कुछ न कुछ खास बनाते भी रहते थे।
प्रमिला से बात करता हूँ तो रोहित को याद करते
करते वह रो देती हैं। प्रमिला कहती हैं- "बहुत ही
मस्तमौला, मददगार और असाधारण इंसान थे रोहित। गत 17 अप्रैल
को जब रात को वह ‘दंगल’ करके लौटे तो
हम में से कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि अब वह कभी स्टूडियो नहीं लौटेंगे।
उस रात उन्हें बुखार आ गया। अहतियात के तौर पर डॉक्टर से बात करते हुए हमने उनका इलाज़
शुरू कर दिया। हालांकि कोविड टेस्ट में नेगेटिव आया लेकिन सीटी स्कैन में कोविड का
आभास हो गया। जब 11 दिन से उनका बुखार नहीं उतरा तो 29 अप्रैल को हमने उन्हें नोएडा
के मेट्रो अस्पताल में दाखिल कराया। खुद बीमार होते हुए भी देर रात तक अपने
ट्विट्टर और फोन से वह लगातार कोरोना रोगियों की मदद कर रहे थे। लेकिन रात करीब 4
बजे अचानक उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई। मैंने तभी डॉक्टर्स को फोन मिलाया। लेकिन
वहाँ कोई सीनियर डॉक्टर मौजूद नहीं था। उन्हें सुबह 6 बजे आईसीयू में शिफ्ट किया
गया। लेकिन कुछ देर बाद वह इस दुनिया में नहीं थे। सब कुछ खत्म हो गया था। सोचती
हूँ उनको अस्पताल लेकर ही क्यों गयी ? "
इतना बड़ा बन गए थे रोहित, यह अब अहसास हुआ
यूं रोहित न्यूज़ चैनल्स के
साथ सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय थे। उनकी लोकप्रियता का एक प्रमाण यह भी था कि उनके
ट्विटर पर करीब 43 लाख फोलोअर्स थे। वह
अपने शो की तैयारी और विभिन्न व्यस्तताओं के बावजूद लोगों को जवाब देने के साथ, कुछ खास किस्म के लोगों पर टिप्पणी करने के लिए बराबर समय निकाल लेते थे।
आम जन से लेकर कितनी ही
बड़ी हस्तियाँ रोहित के काम और उनकी बातों की कायल थीं। असल में रोहित जिस बेबाकी, सूझबूझ और साहस के साथ सवाल पूछते थे, वह सब
दर्शकों के दिलों में घर कर जाता था। अपने तर्क, तथ्यों से
वह अच्छे अच्छों की बोलती बंद कर देते थे। उनकी हाजिर जवाबी का जवाब नहीं था। उनकी
लोकप्रियता तो साफ दिखाई देती थी। लेकिन रोहित इतना बड़ा बन गए थे, इस बात का सही अंदाज उनके निधन के बाद अब हुआ। जब राष्ट्रपति रामनाथ
कोविन्द, उपराष्ट्रपति वेंकेया नायडू और प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी सहित कितने ही दिग्गज केंद्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों ने रोहित
के निधन पर शोक प्रकट करते हुए उन्हें अपनी श्रद्दांजलि दी, रोहित
के काम की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। यहाँ तक रोहित के आज तक में होने के बावजूद
उनके प्रतियोगी चैनल ज़ी न्यूज़, एबीपी न्यूज़ और रिपब्लिक भारत
सहित कुछ और चैनल्स ने भी रोहित सरदाना को अपने विशेष कार्यक्रम समर्पित किए।
रोहित के कुछ नए पुराने संगी
साथी तो जिस तरह चैनल पर यह हृदय विदारक समाचार देते हुए फफक फफक कर रो रहे थे, वह सब दर्शाता है कि गला काट प्रतिस्पर्धा के दौर में भी रोहित ने कितने
ही अच्छे दोस्त बनाए हुए थे। अंजना ओम कश्यप, चित्रा
त्रिपाठी, नवज्योत, रूबिका, रोमाना और पूजा मक्कड़ सहित कई जानी मानी एंकर्स-रिपोर्टर अपने आँसू नहीं
रोक पा रही थी। इतना ही नहीं कोरोना के इस भयावह काल में जब किसी के संस्कार पर घर
के सगे संबंधी, बहन भाई तक नहीं पहुँच रहे। तब कुरुक्षेत्र
में 30 अप्रैल शाम को 6 बजे रोहित के अंतिम संस्कार में कितने ही लोग कोरोना से बेखौफ
हो अपने इस प्रिय को अपनी श्रद्दांजलि देने पहुँच गए थे।
रोहित ने अपनी 41 साल की छोटी सी ज़िंदगी में इतना कुछ पा लिया था। करोड़ों लोगों का अपार प्रेम, लोकप्रियता। पत्रकारिता जगत के बेहद खास सम्मान ‘गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार’ साहित कितने ही और मान सम्मान। लेकिन इस सबके बावजूद रोहित अहंकार से कोसों दूर थे। उन्हें और ज़िंदगी मिलती तो वह और भी कई बड़े और नए नए शिखर को छूते। लेकिन रोहित का इतना काम,उनकी प्रतिभा, उनका हँसता, मुस्कुराता चेहरा, उनकी शालीनता जहां भुलाए नहीं भूलेगी। वहाँ उनकी छोटी से जीवन की यह बड़ी कहानी अनेक लोगों की प्रेरणा बनती रहेगी।
(प्रसिद्ध पत्रिका 'पाञ्चजन्य' साप्ताहिक में 16 मई 2021 अंक में प्रकाशित मेरा लेख कुछ नए इनपुट्स के
साथ)
प्रदीप सरदाना
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Comments
स्तब्ध-निःशब्द, अविश्वसनीय 😥
वरिष्ठ टीवी पत्रकार रोहित सरदाना जी के निधन की दुखद ख़बर स्तब्ध कर देने वाली है। ईश्वर उनकी आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें और परिवार को ये दुख सहने का साहस दें।
Lots of Love To Rohit Ji
RIP
अपने इस आलेख में भाई प्रदीप सरदाना ने रोहित के कार्य क्षेत्र के प्रत्येक पक्ष को उजागर करते हुए उनके जूझारूपन का जिस प्रकार से वर्णन किया है उससे नयी पीढ़ी के लोग प्रेरित हो कर ऐसा ही कुछ चुनौतीपूर्ण कार्य करने को आगे आ सकते हैं.
अल्प आयु की अपनी जीवन अवधि में रोहित की उपलब्धियाँ यह बताती हैं कि अभी न जाने कितने इतिहास वो रचने वाले थे.
ईश्वर रोहित की आत्मा को चिर शान्ति प्रदान करे. इस प्रेरक आलेख हेतु भाई प्रदीप सरदाना का आभार और धन्यवाद ��
डॉ. राजीव श्रीवास्तव