कभी नौशाद के ‘आशियाना’ में बैडमिंटन खेलते थे रफी और दिलीप कुमार


नौशाद के जन्म दिन 25 दिसंबर पर विशेष 

कभी नौशाद के ‘आशियाना’ में बैडमिंटन खेलते थे रफी और दिलीप कुमार

प्रदीप सरदाना  

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

प्यार किया तो डरना क्या, मेरा प्यार भी तू है, सुहानी रात ढल चुकी, तू गंगा की मौज, मेरे महबूबमधुबन में राधिका नाचे रे, न आदमी का कोई भरोसामुझे दुनिया वालो शराबी न समझो, आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले और ये ज़िंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगे। विभिन्न रंगों के इन गीतों के साथ और भी कितने ही गीतों को अपने संगीत से सभी को दीवाना करने वाले नौशाद का आज 101 वां जन्म दिन है। यह बात अलग है कि फिल्म संगीत को अपनी धुनों से लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाने वाले नौशाद आज हमारे बीच नहीं हैं। उनका 5 मई 2006 को इंतकाल हो गया था। लेकिन उनका संगीत अमर है।

नवाबी शहर लखनऊ में 25 दिसम्बर 1919 को जिस परिवार में नौशाद का जन्म हुआ, वहाँ संगीत का नाम लेना भी पाप समझा जाता था। इसके बावजूद नौशाद ने अपने बल बूते पर संगीत को इबादत बनाकर संगीत की दुनिया ही बदल दी। हालांकि इसके लिए नौशाद को कड़ी मेहनत और लंबा संघर्ष करना पड़ा। कितनी ही रातें उन्होंने फुटपाथ पर गुजारीं। लेकिन एक दिन भारतीय सिनेमा के ऐसे संगीतकार बने जिनके संगीत को अपनी फिल्मों में लेना बड़े बड़े फ़िल्मकारों का अरमान होता था।

बाद में फुटपाथ पर सोने वाले नौशाद ने मुंबई के कार्टर रोड पर अपना एक बंगला आशियाना बनाया जहां कभी रात से सुबह तक संगीत की महफिल लगती थी। तो सुबह सवेरे उसी आशियाना में दिलीप कुमार, राजेन्द्र कुमार, जीवन और मोहम्मद रफी जैसे दिग्गज बैडमिंटन खेलने आते थे।

नौशाद ने दिलीप कुमार की तो करीब 15 फिल्मों का संगीत दिया ही। साथ ही गीतकार शकील बदायूनी और गायक रफी के साथ उनकी खूब जमी। इधर यह संयोग है कि रफी जैसे लाजवाब गायक जिन्हें पहली बार नौशाद ने ही ब्रेक दिया, उनका जन्म दिन नौशाद से एक दिन पहले 24 दिसंबर को होता है। 

नौशाद के बड़े बेटे फ़िल्मकार रहमान नौशाद बताते हैं- ‘’रफी साहब मेरे दादा वाहिद अली का सिफारशी खत लेकर नौशाद साहब से मिले थे। नौशाद साहब ने रफी साहब की प्रतिभा देखी तो वह दंग रह गए। उसके बाद दोनों का साथ ऐसा बना कि इतिहास रच गया।‘’


रहमान नौशाद जो खुद भी तेरी पायल मेरे गीत’,'गजल' और 'माई फ्रेंड' जैसी फिल्मों का निर्देशन भी कर चुके हैं। बताते हैं-‘’ऐसा कितनी ही बार होता रहा कि एक संगीत महफिल में रफी साहब और नौशाद साहब के जन्म दिन साथ साथ मनाए गए।‘’

नौशाद ने अपने करीब 65 बरस के फिल्म करियर में 64 हिन्दी फिल्मों सहित कुछ प्रादेशिक फिल्मों  का संगीत भी दिया। इन फिल्मों में 3 ने डायमंड जुबली, 8 ने गोल्डन और 26 ने सिल्वर जुबली मनाई। नौशाद की प्रमुख फिल्मों में रत्न, अनमोल घड़ी, शाहजहाँ, दर्द, अंदाज, मेला, दास्तान, आन, मदर इंडिया, मुगल ए आजम, गंगा जमुना, दिल लिया दर्द लिया, राम और श्याम, मेरे महबूब, संघर्ष, साथी, गंवार और धर्मकांटा भी शामिल हैं। 

यहाँ तक भारत भूषण, मीना कुमारी की उस सुपर हिट फिल्म बैजू बावरा का संगीत भी नौशाद ने ही दिया, जिसके गीत ओ दुनिया के रखवाले 'ने रफी को नयी बुलंदियों पर पहुंचाया। नौशाद के संगीत की सबसे बड़ी बात यह भी रही कि उन्होंने शास्त्रीय संगीत का भरपूर इस्तेमाल करते हुए लोकप्रिय धुनों की रचना की। भैरवी तो उनका बेहद प्रिय राग था, जिसका इस्तेमाल उन्होंने अपने बहुत से गीतों में किया। 

सच पदमभूषण और दादा साहब फाल्के सम्मान जैसे शिखर सम्मान पाने वाले नौशाद की बात ही कुछ और थी।

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Comments

संस्मरणों के आइने में नौशाद इस आलेख में किसी सुरीली तान सी सरगम बिखेरते दिख रहे हैं.
इस सुन्दर लेख की लिए भाई प्रदीप सरदाना को बधाई ��
डॉ. राजीव श्रीवास्तव
संस्मरणों के आइने में नौशाद इस आलेख में किसी सुरीली तान सी सरगम बिखेरते दिख रहे हैं.
इस सुन्दर लेख की लिए भाई प्रदीप सरदाना को बधाई 💐
डॉ. राजीव श्रीवास्तव
संस्मरणों के आइने में नौशाद इस आलेख में किसी सुरीली तान सी सरगम बिखेरते दिख रहे हैं.
इस सुन्दर लेख की लिए भाई प्रदीप सरदाना को बधाई 💐
डॉ. राजीव श्रीवास्तव

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