सबको हँसाने वाले राजू सबको रुला गए

- प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

पिछले करीब 40 दिन राजू श्रीवास्तव ने मौत को खूब चकमा दिया। मानो वह मौत को भी अपने दिलचस्प हास्य से इतना उलझाये हुए थे कि वह भूल ही गयी कि उसे राजू को लेकर जाना है। लेकिन अंत में नियति के आगे किसी का बस नहीं चला। राजू ने ज़िंदगी की जंग लड़ी तो बहुत हिम्मत से लेकिन अंत में वह हार गए।

राजू श्रीवास्तव पिछले महीने अगस्त के शुरू से ही अपने एक विज्ञापन और कुछ अन्य कार्यों से दिल्ली में थे। लेकिन वह कुछ दिन और इसलिए दिल्ली रुक गए क्योंकि उनके भाई काजू श्रीवास्तव के दिल की सर्जरी 10 अगस्त को एम्स अस्पताल में ही होनी थी। भाई की सर्जरी के बाद वह उसी रात मुंबई लौटने वाले थे। लेकिन एम्स जाने से पहले राजू दिल्ली के साउथ एक्सटेंशन में जिम करते हुए गिर गए। यह संयोग ही था कि उसी अस्पताल में एक ओर उनके भाई की सर्जरी चल रही थी दूसरी ओर खुद राजू की।

राजू को यूं दिल की बीमारी पहले से थी। लेकिन पिछले कुछ समय से वह स्वास्थ्य को लेकर काफी सजग थे। खान-पान के ख्याल के साथ वह जिम भी नियमित जाते थे। इधर राजू के इस हादसे के बाद उनका बड़ा-पूरा परिवार एम्स पहुँच गया। सभी ने उनके ठीक होने के लिए भरसक प्रयास किए। न जाने कितनी जगह उनके लिए प्रार्थना की, पूजा कराईं। लेकिन होनी के आगे किसी का बस नहीं चला। सभी को हँसाने वाला सभी को रुला गया।


मैं राजू श्रीवास्तव को उनके करियर की शुरुआती दिनों से जानता हूँ। वह तब सिर्फ 19 साल के थे जब वह अपनी आँखों में सुनहरे सपने लेकर 1982 में कानपुर से मुंबई आए थे।

राजू का वास्तविक नाम सत्य प्रकाश श्रीवास्तव था। राजू के पिता रमेश चंद्र पेशे से वकील थे लेकिन वह कवि बलई काका के रूप में अच्छे खासे मशहूर थे। इधर राजू को बचपन से लोगों की नकल करने का शौक था। बचपन में राजू जहां इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी की आवाज़ में उनकी नकल करते थे। वहाँ स्कूल में वह अपने अध्यापक की नकल करने लगे। उसके बाद राजू ने जब पहली बार दीवार फिल्म देखी तो वह अमिताभ बच्चन के इतने मुरीद बने कि राजू की ज़िंदगी ही बदल गयी। असल में दीवार के बाद जब राजू ने शोले देखी तो वह अमिताभ की मिमिकरी करने लगे। जो इतनी पसंद की गयी कि उन्हें कानपुर में जगह जगह अमिताभ की नकल करने को कहा जाने लगा। ईसर से उनका मन स्टेज शो और फिल्में करने को मचलने लगा।

राजू अपने परिवार में कुल 6 भाई और एक बहन थे। इसलिए उन्हें अपने सपने पूरे करने में शुरू में काफी दिक्कत रही। लेकिन मुंबई नगरी ने उन्हें एक संघर्ष के बाद अपने सपनों के महल में पहुंचा ही दिया। असल में शुरू में राजू, क़व्वाल शंकर-शंभू के शो में उनके साथ जुड़े। बाद में बाबला और मेलोडी मेकर्स आर्केस्ट्रा से। लेकिन किसी ने उन्हें ज्यादा महत्व नहीं दिया। राजू को पहली सफलता 1985 में तब मिली जब सुपर कैसेट ने राजू का एक आडियो केसेट हँसना माना है निकाला। इसके बाद राजू को कल्याणजी आनंदजी और लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल जैसे बड़े संगीत समूह के साथ देश विदेश में स्टेज शो करने के मौके मिलने लगे। राजू उन शो में विभिन्न फिल्म सितारों की नकल करते तो पूरे वातावरण में ठहाके गूंजने लगते। जिनमें राजू को सबसे ज्यादा लोकप्रियता अमिताभ बच्चन कि मिमिकरी से मिलती थी।

इधर राजू को राजश्री प्रॉडक्शन के राजकुमार बड़जात्या ने एक शो में देखा तो उन्हें अपनी फिल्म मैंने प्यार किया में एक रोल दे दिया। इससे राजू को अभिनय क्षेत्र में भी कभी कभार मौके मिलने लगे। राजू के खाते में बतौर अभिनेता तेजाब, बाज़ीगर, मिस्टर आज़ाद, आमदनी अठन्नी खर्चा रुपया, मैं प्रेम की दीवानी हूँ, बिग ब्रदर, बॉम्बे टू गोवा और टौययलेट एक प्रेम कथा जैसी फिल्में हैं।  

उधर राजू एक स्टेंडअप कोमेडियन के रूप में तब मशहूर हुए जब उनके द्वारा रचा गया गजोधर का चरित्र विभिन्न रूपों में सामने आया। सन 2005 में द ग्रेट इंडियन लाफ़्टर चैलेंज ने तो उन्हें काफी लोकप्रियता दिलाई। इसी से उन्हें द किंग ऑफ कॉमेडी का ताज भी मिला। इसीके बाद राजू के अच्छे दिन शुरू हो गए। बिग बॉस, नच बलिए’, राजू हाजिर हो और कॉमेडी नाइट्स विद कपिल जैसे शो ने राजू की लोकप्रियता में चार चाँद लगा दिये।

इन दिनों राजू के सुनहरे दिन चल रहे थे। ढेरों शो और विज्ञापनों के साथ उन्हें भाजपा के साथ राजनीति में भी वह आगे बढ़ रहे थे। राजू के दोनों बच्चों में बेटी अंतरा जहां फिल्म और सीरियल्स में आगे बढ़ रही हैं। वहाँ बेटा आयुष्मान सितार वादन सहित संगीत की दुनिया में अच्छा सक्रिय है। उनकी जीवन संगिनी शिखा उनके पग पग पर साथ चल उनके हौंसले बढ़ा रही थीं। राजू ने एक बार मुझसे कहा था –उनका कोई गुरु नहीं है। लेकिन वह अमिताभ बच्चन को अपना गुरु मानते हैं। इधर उनके निधन पर भी मुझे डॉ हरिवंश राय बच्चन की कविता की ही एक पंक्ति याद आ रही है-क्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना, कुछ ना आया कम तेरा शोर करना गुल मचाना।‘’

(प्रसिद्ध समाचार पत्र ‘प्रभात खबर’ में 22 सितंबर 2022 को रांचीपटनाकोलकाताजमशेदपुरधनबाददेवधरभागलपुरमुज्जफरपुर और भुवनेश्वर सहित सभी संस्करणों में प्रकाशित मेरा लेख)     

- प्रदीप सरदाना

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