समय के साथ बदल रहा है फिल्मों का महाकुंभ

 प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

देश का सबसे बड़ा फिल्म मेला गोवा में 20 नवंबर से शुरू हो गया,जो 28 नवंबर तक चलेगा। एशिया के इस सबसे पुराने भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह की शुरुआत सन 1952 में हुई थी और इस बरस देश में इस समारोह का यह 52 वां आयोजन है। अब तो हर बरस इसका आयोजन हो रहा है। सन 2020 में कोरोना महामारी के चलते इसका आयोजन निर्धारित समय में नहीं हुआ तो पिछले बरस का आयोजन जनवरी 2021 में कर दिया गया। जबकि इसी बरस अब फिर से एक और आयोजन होने से इसकी नियमितता बरकरार हो गयी है।

असल में जब हमारे देश में फिल्म समारोह की शुरुआत हुई थी तब वेनिस, कान, लोकार्नो और कार्लोवी वारी जैसे अंतराष्ट्रीय फिल्म समारोह, विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके थे। उधर जब सन 1946 में चेतन आनंद की हिन्दी फिल्म नीचा नगर ने कान फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार जीता तो पहली बार भारतीय सिनेमा भी विश्व पटल पर आ गया। इसके बाद भारत स्वतंत्र हुआ और तब सरकार और फ़िल्मकारों को लगा कि भारत में भी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह का आयोजन होना चाहिए। इसी विचार से पहला समारोह 1952 में मुंबई में आयोजित हो तो गया। लेकिन दूसरा समारोह 9 बरस बाद दिल्ली में 1961 में हो सका। जबकि प्रतियोगिता वर्ग के साथ तीसरा समारोह दिल्ली में 1965 में हुआ और इसका नियमित आयोजन तो 1974 से संभव हो पाया।  

मुझे खुशी है कि मैं देश के 9 वें फिल्म समारोह से इसे देखता रहा हूँ। खुशी यह भी है कि यह समारोह समय के साथ खुद को बदल भी रहा है। इसीलिए  यह समारोह साल दर साल बेहतर हो रहा है और लोकप्रिय भी। पहले यह दिल्ली के साथ अलग अलग शहरों में होता था। लेकिन 2004 से गोवा को ही इसकी स्थायी आयोजन स्थली बना दिया।

पहले हमारे यहाँ विश्व के फ़िल्मकार अपनी फिल्में भेजने से संकोच करते थे। अपनी फिल्मों के प्रीमियर करने से कतराते थे। लेकिन अब स्थिति यह है कि  इस 52 वें समारोह में अंतरराष्ट्रीय वर्ग के लिए 96 देशों से 624 फिल्मों की प्रविष्टियाँ आई हैं। जिनमें से 73 देशों की 148 फिल्मों का चयन हुआ है। इन फिल्मों में से 19 फिल्मों के वैश्विक-अंतरराष्ट्रीय प्रीमियर हो रहे हैं तो 26 फिल्मों के एशिया और 64 फिल्मों के इंडियन प्रीमियर भी। यूं समारोह में देश-विदेश की कुल 300 फिल्मों का प्रदर्शन होगा। जिससे दर्शकों को मनपसंद फिल्मों देखने में काफी सुविधा रहेगी। 

कोरोना को देखते हुए पिछली बार की तरह इस बार भी इसका आयोजन हाईबब्रिड रूप में हो रहा है। इससे इसे डिजिटल माध्यम से वर्चुअल रूप में गोवा जाये बिना अपने-अपने घरों से भी देखा जा सकेगा। हालांकि 52 वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के उद्धघाटन के दौरान जिस तरह सभागार बिना मास्क पहने लोगों से खचाखच भरा था,उससे लगा अब किसी को  कोरोना का भय नहीं।   

समारोह की शुरुआत दिग्गज निर्देशक कार्लोस सौरा की स्पेनिश फिल्म द किंग ऑफ ऑल द वर्ल्ड के वर्ल्ड प्रीमियर से हुई। साथ ही इस वर्ष हंगरी के सम्मानित निर्देशक इस्तेवान साबो और हॉलीवुड के महान फ़िल्मकार मार्टिन स्कॉरसेजी को सत्यजित रे लाइफटाइम अचिवमेंट तो लोकप्रिय दिग्गज अभिनेत्री हेमामालिनी को इंडियन फिल्म पर्सनेलिटी ऑफ द इयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इस बार समारोह में कुछ नया भी है। आज़ादी के अमृतमहोत्सव के उपलक्ष में सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर की पहल पर, देश के 75 ऐसे युवाओं का चयन कर उन्हें आमंत्रित किया है जो फिल्मों के प्रति विशेष रचनात्मक प्रतिभा रखते हैं। साथ ही 75 बरसों की चुनिन्दा 18 फिल्में भी समारोह में हैं। जैसे श्री 420गाइडसुजाताएअरलिफ्टअंधाधुन। दूसरा इस बार आयोजन में ओटीटी के दिग्गज एमेजननेटफ्लिक्ससोनी लिवज़ी-5,समारोह में अपनी भागीदारी करके इस आयोजन को नया शिखर देंगे। फिर इस बार ब्रिक्स फिल्म समारोह को भी इसी समारोह के साथ आयोजित किया गया है। 

फिल्म- गोदावरी 

इस बार समारोह के प्रतियोगिता खंड की 15 फिल्मों में रूस की दो फिल्मों द डोर्म और मॉस्को डज नोट हैपन के साथ एनी डे नाओ’ (फ़िनलैंड) लीडर (पोलैंड) रिंग वांडरिंग’ (जापान) एंट्रेगलडे’ (रोमानिया) शेलोर्ट’(पैराग्वे) और द फर्स्ट फॉलन’(ब्राज़ील) जैसी विदेशी फिल्में हैं हीं। अच्छी बात यह भी है कि प्रतियोगिता वर्ग में भारत की भी 3 फिल्मों को जगह मिली है। जिनमें मराठी की दो फिल्में गोदावरी और मी वसंतराव के साथ दिमासा बोली की पहली फिल्म सेमखोर भी है। यही फिल्में एक गोल्डन पीकॉक और 4 सिल्वर पीकॉक के पुरस्कार की दौड़ में हैं ।  

उधर इंडियन पेनोरमा वर्ग में देश की 24 फिल्मों में हिन्दी की दो एट डाउन तूफान मेल और अल्फा बीटा गामा के साथ मराठी की 5 और बांग्ला और कन्नड की चार-चार फिल्में हैं। तो मलयालम की दो और संस्कृत, गुजराती, तमिल, तेलुगू, मिशिंग, दिमासा और बोड़ो की एक-एक फिल्म है। इस बार के दादा साहब फाल्के विजेता रजनीकान्त की फिल्मों के साथ ओटीटी की कई फिल्में भी समारोह का विशेष आकर्षण हैं।

फिल्मों के इस महाकुंभ में दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार की अविस्मरणीय फिल्म देवदास दिखाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाएगी। समारोह में देश विदेश के उन दिग्गज फ़िल्मकारों को याद करने की परंपरा है जिनका निधन हाल ही में  हुआ हो। इसलिए दिलीप कुमार के साथ,पुनीत राजकुमार,अभिनेत्री सुरेखा सीकरी,सुमित्रा भावे और फ़िल्मकार बुद्धदेव दासगुप्ता और संचारी विजय की  फिल्में दिखाकर उन्हें भी नमन किया जाएगा।

उधर जेम्स बॉन्ड की भूमिका से लोकप्रिय हुए हॉलीवुड फिल्मों के सुप्रसिद्द अभिनेता शॉन कॉनरी की तो 5 चर्चित फिल्में दिखाकर उन्हें विशेष श्रद्धांजलि दी जाएगी। वहाँ श्रद्धांजलि वर्ग में क्रिस्टोफर प्लमर, जॉन पॉल बेलमोण्डों, बट्रेड टेवनिर्यर और जॉन क्लॉड कैरिएर जैसे विदेशी फ़िल्मकारों की फिल्में भी प्रदर्शित होंगी।

कुल मिलकर फिल्म प्रेमियों के लिए यह समारोह किसी वरदान से कम नहीं। लेकिन यदि मुंबई फिल्म जगत के मुख्य धारा के बड़े सितारे,फ़िल्मकार भी इस समारोह में स्वयं बढ़-चढ़ कर हिस्सा लें तो इसका आयोजन और भी सार्थक हो सकेगा।

(प्रसिद्ध समाचार पत्र 'प्रभात खबर' के संपादकीय पृष्ठ पर 22 नवम्बर 2021 को सभी संस्करण में प्रकाशित मेरा लेख) 

प्रदीप सरदाना    

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