केबीसी में एक करोड़ रुपए जीतने वाली दृष्टिहीन हिमानी बुंदेला से मेरी विशेष बातचीत

- प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

मोदी जी को देखा नहीं लेकिन उनका दिल से सम्मान करती हूँ- हिमानी बुंदेला  

सिर्फ 25 साल की दृष्टिहीन हिमानी बुंदेला ने गत 31 अगस्त को केबीसी में एक करोड़ रुपए जीतकर जो इतिहास रचा है, उससे सभी हैरान हैं। यूं कौन बनेगा करोड़पति में पहले भी कुछ महिलाएं करोड़पति बन चुकी हैं। पिछले सीजन में भी तीन महिलाएं करोड़पति बनी थीं। लेकिन यह पहला मौका है जब किसी दृष्टिहीन महिला ने एक करोड़ रुपए जीतकर सभी को दिखा दिया है कि उड़ान पंखों से नहीं हौसलों से होती है।

हिमानी आगरा की रहने वाली हैं। हालांकि हिमानी जन्म से दृष्टिहीन नहीं थीं। करीब 10 साल पहले एक दुर्घटना के बाद उनकी आँखों की रोशनी चली गयी। लेकिन हिमानी ने हिम्मत नहीं हारी। पहले अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की । फिर प्राथमिक केन्द्रीय विद्यालय आगरा में वह शिक्षिका बनीं और अब केबीसी में एक करोड़ रुपए जीतने के बाद उनकी ज़िंदगी बदल गयी है। चंद दिन पहले जिसे अपने शहर आगरा में भी गिने चुने लोग जानते थे। आज वह देश भर में मशहूर हो गयी हैं। जिसने भी केबीसी के हिमानी वाले 30 और 31 अगस्त के एपिसोड देखे, वह हिमानी का हो गया।

असल में हिमानी का अंदाज़, आत्मविश्वास और साहस देखते ही बनता है। यहाँ तक शो के होस्ट और महानायक अमिताभ बच्चन भी हिमानी की प्रतिभा और बेबाकी के कायल हो गए। कोरोना के चलते प्रतियोगियों से दूरी बनाए रखने के नियमों का पालन करने वाले अमिताभ बच्चन ने हिमानी के मामले में नियमों को दरकिनार कर दिया। शो के दौरान अमिताभ ने हिमानी को न सिर्फ दो बार स्वयं हाथों से पानी का गिलास थमाया। बल्कि खेल के दूसरे दिन तो बैक स्टेज से भी अमिताभ खुद ही हिमानी को पकड़ कर हॉट सीट तक लाये।

इस सफलता, उनके संघर्ष, उनके विचारों और सपनों को लेकर हमने हिमानी से एक विशेष बातचीत की। जानिए क्या कहती हैं हिमानी –

आपको करोड़पति बनने पर बहुत बहुत बधाई। आपने हँसते-खेलते और जिस बेबाकी से केबीसी में सवालों के जवाब दिये, उससे सभी इतने खुश हैं कि लग रहा है मानो आपने ओलंपिक में रजत पदक जीत लिया। कैसा रहा यह अनुभव और इस सफलता का जश्न?

ज़ोर से हँसते हुए- धन्यवाद, धन्यवाद। बहुत ही शानदार अनुभव रहे। मुझे केबीसी में जाकर एक पल के लिए भी नहीं लगा कि मैं दिव्यांग हूँ। वहाँ सभी का जो सहयोग मिला उसी से ही मुझमें आत्मविश्वास आया और मैं आगे बढ़ पायी। अमिताभ बच्चन जिनको हम शहंशाह कहते हैं, वह इतने विनम्र हैं कि उनकी आवाज़ ही एक नयी ऊर्जा देती है। इधर जीतने पर तो जश्न लगातार जारी है। 31 अगस्त की रात को एपिसोड में जब मैंने एक करोड़ जीते तो हमारी पूरी कालोनी में ढ़ोल बज उठे। यह धमाल दो दिन तक चलता रहा। सबने जमकर डांस किया। हर कोई मेरे साथ डांस करना चाहता था। मुझे सेलेब्रिटी होने का एहसास हो रहा था। अगले दिन सुबह स्कूल गयी तो बच्चे खुशी से पागल हो गए। हिमानी मेम, हिमानी मेम करके चिल्लाने लगे। स्कूल से वापस आ रही थी तो सारे रास्ते में लोग मुझे फूल देते रहे। मेरी गाड़ी पूरी तरह फूलों से भर गयी।

आपकी सड़क दुर्घटना के समय जब दृष्टि चली गयी उसके बाद का दौर बेहद पीड़ा दायक और निराशा वाला रहा होगा। क्या था वह हादसा?

मैं तब 15 साल की थी और अपनी साइकिल से बाहर सड़क पर जा रही थी। तभी मेरे बगल से गुजर रहे एक बाइक सवार ने अचानक मेरे सामने से बाइक को ऐसा घुमाया कि मैं वहाँ गिरने के साथ कुछ दूर तक घिसटती चली गयी। वहाँ सड़क काफी टूटी हुई थी, जिससे कंकड़ पत्थर मेरे शरीर में धसने के साथ आँखों में भी चले गए। मैं लहू लुहान हो चुकी थी। मेरी बाई आँख तो ग्लूकोमा के कारण पहले ही बेजान सी थी। लेकिन अब दायीं आँख में चोटें इतनी आयीं कि मेरी चार बार सर्जरी हुई। लेकिन आँख ठीक होने की जगह, मुझे दिखना ही बंद हो गया। हम सभी दुखी तो बहुत हुए। लेकिन मेरे परिवार वालों ने मुझे बहुत हिम्मत दी। इससे मैंने अपनी ज़िंदगी जीने का नज़रिया बदला। हमेशा कुछ नया करती रहती हूँ, खुश रहती हूँ। इससे मुझे कभी ज़िंदगी बोझ नहीं लगती। मुझे लगता मैं सभी वो काम कर सकती हूँ जो और लोग कर सकते हैं।


अब आप जब अच्छी ख़ासी प्रसिद्द हो चुकी हैं। एक करोड़ रुपए भी जीत चुकी हैं। तो अब आपकी क्या योजनाएँ हैं ?

टैक्स आदि कटने के बाद मुझे जो भी धन राशि मिलेगी,उसमें से कुछ तो मैं अपने और परिवार के भविष्य के लिए इस्तेमाल करना चाहूंगी। जबकि बाकी राशि के लिए दिव्यांग लोगों के लिए काम करूंगी। मैं दिव्यांगों के लिए एक ऐसा कोचिंग केंद्र खोलना चाहती हूँ, जहां उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार किया जा सके। फिर मेरे पास एक ऐसे बड़े जागरूक अभियान की योजना है, जिससे सभी की ज़िंदगी बदल सकती है। असल में दिव्यांगों के लिए मेरे पास बहुत सी योजनाएँ हैं। मैं अभी प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका हूँ।  इसलिए मेरे पास कोई ऐसे अधिकार या शक्ति नहीं कि उन योजनाओं को लागू कर सकूँ या करवा सकूँ। मैं यदि किसी दिव्यांग संस्थान की प्रमुख हूँ तो दिव्यांगों के लिए एक से एक बेहतर काम करने के साथ उन्हें मुख्य धारा से भी जोड़ सकती हूँ।  


केंद्र सरकार या उत्तर प्रदेश सरकार ने दिव्यांगों के लिए पिछले बरसों में कई योजनाएँ बनाई हैं। यहाँ तक पहले इस तरह के लोगों को विकलांग कहा जाता था। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में ही ऐसे व्यक्तियों को सम्मान देने के लिए दिव्यांग कहकर संबोधित करने के लिए कहा था। पीएम का मानना है कि इस तरह के व्यक्तियों के पास अतिरिक्त शक्ति होती है। आप इस तरह की सरकार की बातों की जानकारी रखती हैं या नहीं ?

जी बिलकुल रखती हूँ। मैं प्रधानमंत्री मोदी का दिल से सम्मान करती हूँ। उन्होंने हमलोगों के लिए विकलांग की जगह दिव्यांग शब्द से सम्बोधन का जो काम किया है, वह ही बहुत बड़ा काम है। निश्चय ही इससे काफी बदलाव आया है,सभी में आत्मविश्वास बढ़ा है। सभी लोगों को सम्मान मिला है। मोदी जी के आने पर दिव्यांगों के लिए और भी बहुत अच्छे काम हो रहे हैं। मुझे खास तौर से उनकी सुगम्य पुस्तकालय वाली योजना तो बहुत अच्छी लगी। इसने हमारी ज़िंदगी बहुत ही सहज हो गयी है। असंख्य पुस्तक यहाँ उपलब्ध हैं। कोई भी पुस्तक हम पढ़ सकते हैं, डाउन लोड कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ये सभी पुस्तकें निशुल्क उपलब्ध हैं। इसके अलावा एडिप योजना से भी जगह जगह कैंप लगाकर दिव्यांगों को जिस तरह श्रवण यंत्र सहित विभिन्न यंत्र और रिक्शा आदि उपलब्ध कराये जा रहे हैं, वह काम भी बहुत अच्छा है। उत्तर प्रदेश सरकार में भी योगी जी की तरफ से बहुत से अच्छे काम हो रहे हैं। हालांकि मैंने मोदी जी, योगी जी को कभी देखा नहीं, उनसे मिलना भी नहीं हुआ।

जब आप पहले देख सकती थीं तब मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। तब की उनकी कोई छवि आपके मन मस्तिक में है क्या ?

जी तब वह गुजरात के सीएम थे। लेकिन तब मेरी राजनीति में इतनी दिलचस्पी नहीं थी। अपनी स्कूल के पढ़ाई में ज्यादा व्यस्त रहती थी या फिर समय मिलने पर फिल्में देखती थी। इसलिए मोदी जी का चेहरा तो याद नहीं  लेकिन इतनी धुंधली स्मृति जरूर है कि उनका कद काठी बहुत अच्छा है।

क्या अब आपकी राजनीति में दिलचस्पी बढ़ी है। या क्या खुद राजनीति में आना चाहेंगी ?

राजनीति में आने में कोई दिक्कत तो नहीं है। क्योंकि राजनीति में रहकर दिव्यांगों के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। लेकिन मैं यह तभी चाहूंगी जब मेरा अपना भविष्य भी सुरक्षित हो। यह नहीं कि एक दो साल के लिए राजनीति में आ गए। उसके बाद कुछ नहीं। हाँ सरकार मुझे दिव्यांगों के कल्याण कार्यों के साथ मुझे जोड़ना चाहे तो मैं वह काम अच्छे से कर सकती हूँ। 

(सुप्रसिद्ध पत्रिका 'पाञ्चजन्यसाप्ताहिक में 19 सितम्बर 2021 अंक में प्रकाशित मेरा लेख कुछ नए इनपुट्स के साथ)

प्रदीप सरदाना    

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