आकाशवाणी के स्वर्णकाल के अंतिम पुरोधा थे रामानुज प्रसाद सिंह
प्रदीप
सरदाना
वरिष्ठ
पत्रकार एवं समीक्षक
सुप्रसिद्द समाचार वाचक
रहे रामानुज प्रसाद सिंह के निधन के साथ ही आकाशवाणी के स्वर्ण काल का अंतिम
स्तम्भ भी ढह गया। एक दौर था जब आकाशवाणी पर समाचार बुलेटिन सुनने के लिए अनेक लोग
अपने सभी काम काज छोड़ शांत बैठ जाते थे। तब किसी भी समाचार के सच का सबसे विश्वसनीय एक
मात्र स्त्रोत आकाशवाणी ही होता था। उस दौर में समाचार वाचक किसी सितारे से कम
नहीं थे। उन सितारों में एक सितारा थे रामानुज प्रसाद सिंह। जब भी वह बुलेटिन की
शुरुआत में वे कहते थे- ‘यह आकाशवाणी है, अब आप रामानुज प्रसाद सिंह से समाचार सुनिए’,तो उनकी
आवाज़ से, समां बंध जाता था। लेकिन अब वह आवाज़ हमेशा के लिए
शांत हो गयी है। आकाशवाणी का यह सितारा गत 21 सितंबर की देर रात को आकाश में लुप्त
हो गया।
असल में रामानुज आकाशवाणी
के स्वर्ण काल के अंतिम पुरोधा थे। उनके जाने से देवकीनंदन पांडे, विनोद कश्यप, अशोक वाजपेयी और रामानुज प्रसाद सिंह
के उस युग की भी बिदाई हो गयी, जो इस चौकड़ी के लिए प्रसिद्द
था। पहले तीनों समाचार वाचक तो पहले ही दुनिया छोड़ चुके हैं।
ये चारों आकाशवाणी के न्यूज़ रीडर काडर के ऐसी शख्सियत थे, जिनकी आवाज़ का जादू सभी के सिर चढ़ कर बोलता था। ये लोग विशुद्द समाचार वाचक थे। इनके बाद समाचार वाचक का काडर समाप्त हो गया। फिर जो भी लोग समाचार वाचन में आए वे समाचार पढ़ने के साथ और भी काम करते थे। यूं आकाशवाणी आज भी बरसों से वैसे ही समाचार सुनाती आ रही है, लेकिन आज शायद ही किसी को किसी समाचार वाचक का नाम याद हो।
रामानुज प्रसाद सिंह का
जन्म 5 दिसंबर 1935 को बिहार के बेगूसराय क्षेत्र के सिमरिया गाँव में हुआ था।
साहित्य संस्कृति इनको विरासत में मिली थी। इनके पिता डॉ सत्यनारायण सिन्हा, सुप्रसिद्द कवि रामधारी सिंह दिनकर के छोटे भाई थे। युवा होने पर रामानुज
ने शुरू में बिहार में ही अध्यापन कार्य किया। बाद में यह दिल्ली आ गए और आल इंडिया रेडियो में समाचार वाचक बन गए। जहां दिसंबर 1995 तक वह अपनी
सेवाएँ देते रहे।
रामानुज जी जहां अपने
श्रेष्ठ समाचार वाचन, अपनी प्रभावशाली आवाज़ और सटीक शब्द
उच्चारण के लिए जाने जाते थे, वहाँ शानदार व्यक्तित्व और
दिलदार इंसान के रूप में भी इनकी विशिष्ट पहचान थी। जो भी इनके संपर्क में आता वो इनका
होकर रह जाता।
घर परिवार के साथ
इनके सभी संगी साथी इन्हें दादा कहकर बुलाते थे। ये सभी की मदद किया करते थे। किसी
के बच्चे का स्कूल में दाखिला कराना हो, किसी को
अस्पताल में भर्ती या फिर किसी की नौकरी लगवानी हो या किसी का शादी ब्याह, सभी की समस्या रामानुज चुटकी बजाते हुए हल कर देते थे। आकाशवाणी से जुड़े
कुछ लोग आज भी यह बताते नहीं थकते कि तब रामानुज जी कहीं भी किसी के काम के लिए
फोन कर दें या खुद चलकर किसी के पास चले जाएँ, उनके इतना बोलते
ही कि मैं रामानुज प्रासाद सिंह हूँ, सभी काम हो जाते थे।
सफ़ेद कुर्ता
पायजामा और सर्दी में उस पर काली जैकेट या कंधे पर शॉल उनकी खास पोशाक थी। मैने
उनको जब भी आकाशवाणी में देखा उनका कुर्ता पायजामा इतने सलीके से इस्तरी किए हुए
होता था कि उनकी सादगी में भी शान झलकती थी। यूं भी वह साफ सफाई को इतना पसंद करते
थे कि उनके घर में कहीं भी कोई गंदगी या कुछ बिखरा हुआ नहीं मिलता था। वह
बागबानी के भी बहुत शौकीन थे। चाहे पहले वह अपने दिल्ली के एंड्रूयज़ गंज के सरकारी
मकान में रहे या अब साकेत के अपने निजी घर में। उनका बगीचा हमेशा उनकी तरह महकता रहा।
आकाशवाणी से सेवा निवृत
होने के बाद रामानुज ने अपने जीवन को खूब अच्छे से जिया। अपनी पत्नी, दो बेटियों और एक पुत्र के साथ तो उन्होंने अच्छा समय बिताया ही। साथ ही
अपनी पत्नी मणीबाला सिंह के साथ यूरोप, अमेरिका, सिंगापुर, दुबई सहित लगभग पूरे विश्व का भ्रमण
किया। वे अपने अंतिम दिनों तक बेहद खुश रहते थे। कोई मिलने आता तो वह उससे अच्छे
से मिलते थे। रेडियो पर अब समाचार तो नहीं, पर पुराने गाने
बहुत सुनते थे। हालांकि अब पहले की तरह ज्यादा हंसी मज़ाक तो उनका कुछ बरसों से कम
हो गया था। लेकिन मैथिली में बात करनी हो या दूध-रोटी या दही-चूड़ा खाना हो तो वे अब भी बच्चों संग मिलकर खूब मज़े से खाते थे। यहाँ तक कि कई बार चाय भी वह खुद बनाकर सभी
को पिलाते थे।
अपनी 86 की उम्र में भी वह
काफी स्वस्थ रहे। हालांकि बीस साल पहले उनकी बायपास सर्जरी हुई थी। इसके अलावा उन्हें कभी कोई रोग नहीं रहा। कभी कोई दवा नहीं लेते थे। लेकिन 19
सितंबर की रात को वह टहलते हुए घर में गिर गए। दो दिन बाद गुरुग्राम के एक
अस्पताल में उन्होने आखिरी सांस ली। इसके बाद समाचार की दुनिया के सरताज खुद ही
समाचार बन गए।
(प्रसिद्ध समाचार पत्र ‘प्रभात खबर’ में 24 सितम्बर 2021 को रांची, पटना, कोलकाता, जमशेदपुर, धनबाद, देवधर, भागलपुर, मुज्जफरपुर और भुवनेश्वर सहित सभी संस्करणों में प्रकाशित मेरा लेख)
- प्रदीप सरदाना
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