सेना और सैनिकों को मिला बड़ा सम्मान

 

सेना और देश के वीर सैनिकों के हित में हो रहे हैं कई बड़े काम 

- प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं विश्लेषक 

प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार जब नरेन्द्र मोदी 23 अक्टूबर 2014 को सियाचीन में सेना के जांबाज़ों के साथ दिवाली मनाने गए, तो उनहोंने वहाँ आगंतुक पुस्तिका में लिखा- ‘’सीमाओं की रक्षा करने वाले जवान हमारे ऋषि–मुनियों से किसी भी तरह कम नहीं।” पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने देश के सैनिकों की तुलना ऋषि मुनियों से की थी। कड़कती सर्दी में 12 हज़ार फुट की ऊंचाई पर बैठे भारतीय सशस्त्र सेना के वीर अचानक अपने बीच देश के पीएम को देख गदगद हो गए थे।

भारतीय संस्कृति में ऋषि मुनियों को सदियों से शक्ति, ज्ञान और सम्मान का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन काल में भी ऋषियों को राजा महाराजा भी देवता तुल्य मानकर उनको सर्वाधिक सम्मान देते रहे हैं। लेकिन आधुनिक काल में विश्व भर में दूर दूर तक ऐसी कोई और मिसाल नहीं मिलती जब किसी देश के  पीएम ने सेना के साथ कोई उत्सव मनाया हो।

हालांकि 2014 में जब पहली बार नरेन्द्र मोदी सियाचीन में सैनिकों के साथ दिवाली मनाने गए तो लगा वह प्रधानमंत्री बनने के बाद सेना को यह संदेश देना चाहते हैं कि वह सेना को बहुत सम्मान देते हैं। लेकिन उसके बाद जब वह हर दिवाली पर लगातार सैनिकों के साथ दिवाली मनाने जाने लगे तो साफ हो गया कि सैनिकों के प्रति प्रेम और सम्मान उनके हृदय की गहराइयों तक है।

सन 2015 में मोदी ने डोगराई, पंजाब में, 2016 में किन्नौर, हिमाचल में, 2017 में बांदीपोरा, जम्मू-कश्मीर में, 2018 में हरसिल, उत्तराखंड में, 2019 में लोंगेवाला, राजस्थान में सैनिकों के साथ दिवाली मनाई। और इस बार मोदी ने 4 नवंबर को जम्मू कश्मीर के नौशेरा में दिवाली मनाई।

असल में मोदी सैनिकों के साथ दिवाली मनाते हुए उन सैनिकों के मन में तो एक नया उत्साह भरते ही हैं जो अपने घर परिवार से कोसों दूर देश की सीमाओं के प्रहरी बनकर हम सभी की रक्षा कर रहे हैं। साथ ही वह इसी बहाने देश की सीमाओं का निरीक्षण भी कर लेते हैं और शहीद स्मारकों पर जाकर शहीदों को श्रद्धांजलि भी दे देते हैं। फिर जब देश का पीएम एक साथ कितने ही जवानों को अपने हाथ से मिठाई खिलाये, उनकी वीरता का गुणगान करे तो उन सैनिकों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता। इसी दौरान सैनिकों से सीधे संवाद से मोदी उनके दुख सुख और विचार भी जान लेते हैं और सरकार सैनिकों के लिए क्या क्या कर रही यह भी बता देते हैं। सैनिकों को भी लगता है कि देश और देश के प्रधानमंत्री उनके साथ खड़े हैं।

देखा जाये तो पिछले करीब 7 बरसों में सेना को इस सम्मान के साथ और भी इतना कुछ मिला है कि जिसकी कल्पना भी सहज नहीं थी। सबसे पहले जब मनोहर परिर्कर देश के रक्षा मंत्री थे तो उन्होंने सेना के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट की मंजूरी देकर, 2016 में 50 हज़ार जैकेट उपलब्ध करा दी। कुछ समय पहले मौसम की मार से बचने के लिए सैनिकों को मौसम के अनुकूल जैकेट और जूते मिलने से भी उनकी कठिनाई कुछ कम हो गयी है।

फिर नवंबर 2015 में वन रैंक वन पेंशन लागू करना भी एक ऐसा बड़ा काम थी जिसकी मांग बरसों से हो रही थी। इधर पिछले कुछ बरसों में तो लगातार सेना के लिए जो कुछ किया जा रहा है उससे सैनिकों का हौसला भी बढ़ रहा है और सेना मजबूत होने के साथ सम्मानित भी हो रही है। फरवरी 2019 में इंडिया गेट के निकट भव्य राष्ट्रीय समर स्मारक बनना भी सैनिकों को एक बड़ा सम्मान है। ऐसे ही भारत के वीर पोर्टल की स्थापना से अब किसी भी शहीद के परिवार को जनता सीधे आर्थिक सहायता दे सकती है। मोदी सरकार ने पीछे जहां तीनों सेना के प्रमुख के रूप में रक्षा प्रमुख एक नया पद सृजन करके सेनाओं को एक सूत्र में बांधने और सेना को अधिक मजबूत करने का कार्य किया। वहाँ गत अक्तूबर में विजय दशमी के मौके पर 7 रक्षा कंपनियाँ बनाकर भी सैनिक शक्ति को एक नया आधार दिया है। फिर देश की वायु सेना को राफेल जैसे अत्याधुनिक विमान और जल सेना को विशाल शक्तिशाली युद्द पोत आदि मिलने से भी सेना को अपार शक्ति मिली है।  

इधर हम हमेशा सेना के जवानों की बात करते हैं लेकिन पीएम मोदी ने नौशेरा में पहली बार कहा- ‘’देश के वीर पुत्रों और पुत्रियों द्वारा राष्ट्र की सेवा की जा रही है। देश की रक्षा में महिलाओं की भागीदारी नई ऊँचाइयाँ छू रही है।‘’ असल में बरसों से महिलाओं का सेना में चयन शॉर्ट सर्विस कमीशन के माध्यम से होता था और पुरुष स्थायी कमीशन माध्यम से भी सेना में आते थे। इससे महिलाओं का कार्यकाल अधिकतम 14 बरस होने से वे कर्नल, ब्रिगेडियर या जनरल जैसे उच्च पदों पर नहीं पहुँच पाती थीं। लेकिन अब लैंगिक समानता करके जहां महिलाओं को भी स्थायी कमीशन मिल गया है। वहाँ राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में भी अब युवतियाँ, युवकों की तरह कक्षा 12 के बाद प्रवेश ले सकती हैं। साथ ही सैनिक स्कूल और कॉलेज के द्वार भी अब लड़कियों के लिए खुल गए हैं। इससे अब सेना में अधिक महिलाएं आ सकेंगी। यहाँ तक  भविष्य में कोई महिला देश की सेना के सर्वोच्च पद पर भी पहुँच सकती है।

(प्रसिद्ध समाचार पत्र अमर उजाला में 10 नवम्बर 2021 अंक में प्रकाशित मेरा लेख कुछ नए इनपुट्स के साथ। दिल्ली,आगरा,कानपुर, लखनऊ,वाराणसी, प्रयागराज,  बिलासपुर, चंडीगढ़, देहारादून, फ़रीदाबाद, गाज़ियाबाद, नोएडा, कुरुक्षेत्र, गोरखपुर, गुरुग्राम, हमीरपुर, हिसार, हरिद्वार, जालंधर, जम्मू ,झाँसी, मथुरा, नैनीताल और शिमला सहित सभी संस्करण में)

प्रदीप सरदाना    

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