अपने ही जाल में फंसे केजरीवाल

- प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं विश्लेषक  

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में जिस तरह कश्मीरी पंडितों की पीड़ा का उपहास उड़ाया,उसे भुलाया नहीं जा सकता। यूं केजरीवाल पहले भी कई भद्दे मज़ाक करने के बाद मुसीबत में घिरते रहे हैं। हालांकि बाद में माफी मांगकर वह उस संकट से निकल आते हैं।लेकिन इस बार केजरीवाल ने ठहाकों के बीच जिस अंदाज़ में, द कश्मीर फ़ाइल्स को झूठी फिल्म कहकर, कश्मीरी पंडितों के ज़ख़्मों पर नमक छिड़का है,वह उनका पीछा छोड़ने वाला नहीं। एक विशेष वर्ग को खुश करने के लिए केजरीवाल ने जो जाल बुना उसमें वह खुद बुरी तरह फंस गए हैं। यह घटना ऐसी है जो उनकी राजनीति उड़ान के पर कतरने के लिए पर्याप्त है ।  

असल में द कश्मीर फ़ाइल्स 32 साल पहले हुए कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार और घोर अत्याचारों की जो तस्वीर प्रस्तुत करती है,उसे देख दर्शकों की रूह काँप उठती है। आज़ादी के बाद के करीब 75 साल के सिनेमा इतिहास में यह फिल्म एक अभूतपूर्व जन आंदोलन बनकर उभरी है। लेकिन केजरीवाल ने इस फिल्म को कर मुक्त न करके जिस तरह यूट्यूब पर डालने का अट्टहास किया उससे केजरीवाल के प्रति जन आक्रोश उमड़ पड़ा है। इसके लिए केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी को भी अशोभनीय अपशब्द कहकर और भी मुसीबत मोल ले ली है। क्योंकि पीएम मोदी तो कभी कभार उरी या द कश्मीर फ़ाइल्स जैसी फिल्मों पर प्रतिक्रिया देते हैं। लेकिन केजरीवाल तो आए दिन स्वरा भास्कर और तापसी पन्नु तक की छोटी छोटी फिल्मों को सोशल मीडिया पर जमकर प्रचारित करते रहते हैं।

मुख्यमंत्री केजरीवाल अपने साथियों के साथ सदन में जिस अंदाज में कश्मीरी पंडितों के दुख दर्द को झूठा ठहराने में लगे थे, उससे साफ था कि हाल ही में पंजाब राज्य में अपनी पार्टी की सरकार बनाने के बाद उनमें एक नयी ऊर्जा आ गयी है। जो अपने सामने न देश के प्रधानमंत्री को कुछ समझ रही है न हिंदुओं के पुराने ज़ख़्मों को। जबकि इन हालिया चुनावों के परिणामों को ध्यान से देखें तो उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और पंजाब के चार राज्यों में ज़ोर शोर से चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी की चाहे पंजाब में जीत हुई है लेकिन बाकी तीन राज्यों में केजरीवाल और उनकी पार्टी की बुरी तरह हार हुई है। लेकिन पंजाब विजय के शोर में उस करारी हार को दबाने की असफल कोशिश की गयी।  

इस सबके बावजूद आप के कुछ नेता यह दावा कर रहे हैं कि पूरे देश ने केजरीवाल मॉडल को स्वीकार किया है। यहाँ तक कि एक यह भ्रम भी फैलाया जा रहा है कि आम आदमी पार्टी देश की तीसरी सबसे बड़ी नेशनल पार्टी बन कॉंग्रेस और भाजपा का विकल्प बन गयी है। लेकिन इन चुनाव परिणाम के तथ्यों को ध्यान से देखें तो आप’, भारतीय जनता पार्टी का विकल्प तो क्या उसके पासंग में भी कहीं नहीं ठहरती। आश्चर्य यह है कि केजरीवाल और आप की तीन राज्यों की करारी हार का कहीं कोई विश्लेषण नहीं हुआ। जबकि इन तीनों राज्यों में अधिकतर सीटों पर आप प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त हो गयी है। ऐसी निराशाजनक हार के बाद भी केजरीवाल हसीन सपने देख रहे हैं।   

पहले उत्तर प्रदेश की ही बात करें। यहाँ की 403 विधानसभा सीटों पर अधिकांश पर आप ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन एक भी सीट जीतना तो दूर, लगभग सभी सीटों पर आप के प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी। उत्तर प्रदेश में केजरीवाल और उनकी पार्टी की क्या स्थिति है, उसका अंदाज़ इस बात से भी सहज लग सकता है कि यहाँ अधिकांश सीटों पर आप को नोटा से भी कम मत मिले। अधिकतर सीटों पर तो आप प्रत्याशी को कुल एक हज़ार मत भी नहीं मिले। उदाहरण के रूप में देखिये, सहारनपुर नगर विधानसभा सीट पर आप को सिर्फ 287 मत मिले। जबकि नोटा को 753 मत मिल गए। भाजपा के प्रत्याशी ने यहाँ 1 लाख 43 हज़ार 195 मत पाकर विजय प्राप्त की। 

बिजनौर सीट पर भी आप को मात्र 399 मत मिले जबकि नोटा का बटन 1114 मतदाताओं ने दबाया। यहाँ भी भाजपा ने 97165 मत प्राप्त कर विजय अपने नाम लिख दी।महोबा सीट पर भी आप को सिर्फ 649 और नोटा को 1514 मत मिले। यहाँ भाजपा ने 94490 वोट हासिल कर जीत दर्ज की। एक मशहूर शहर बरेली की सीट पर भी नोटा का बटन तो 1178 लोगों ने दबाया लेकिन आप का प्रत्याशी 714 मत ही पा सका। यहाँ भाजपा ने 129014 मत प्राप्त करके सफलता पाई।

मिसाल और भी हैं। ललितपुर सीट पर आप को 857 मत मिले, नोटा को 3880, भाजपा तो यहा 176550 मत प्राप्त करके शानदार ढंग से विजयी रही। टूंडला सीट पर आप को 405 और नोटा को 1110 मत मिले। भाजपा अन्य सभी से अधिक, 122881 मत पाकर विजयी रही। उधर तुलसीपुर विधानसभा में आप को 761,‘नोटा को 2220 और भाजपा को 87032 वोट मिले।स्याना में भी आप को 738,‘नोटा को 1402 और भाजपा ने 149125 मत पाकर यह सीट भी जीत ली।   

इन आंकड़ों को देख कोई भी समझ सकता है कि आप या केजरीवाल उत्तर प्रदेश में धरातल पर भी कहीं नहीं हैं। कुल मिलाकार भी इतने बड़े राज्य में आप को मात्र 0.38 प्रतिशत मत ही मिले। बड़ी बात यह भी है कि दिल्ली का मुख्यमंत्री होने के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानि एनसीआर में भी आप को कहीं से भी एक सीट नहीं मिली।

ऐसे ही उत्तराखंड और गोवा को लेकर भी केजरीवाल ने कई सुनहरे सपने देखे थे। लेकिन यहाँ भी उनके सपने बुरी तरह टूट गए। उत्तराखंड में भी आप ने सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे लेकिन जनता की उम्मीद पर कोई भी खरा नहीं उतरा। उत्तर प्रदेश की तरह यहाँ भी आम आदमी पार्टी अपना खाता नहीं खोल पायी। आप के सभी उम्मीदवारों ने अपने नाम हार लिखकर केजरीवाल की तमाम उम्मीदों पर पानी फेर दिया। आप की हालत यहाँ भी इतनी पतली रही कि 70 में से 55 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी। यहाँ तक आम आदमी पार्टी का उत्तराखंड में बड़ा चेहरा बने कर्नल अजय कोठियाल भी गंगोत्री सीट से अपनी जमानत तक नहीं बचा पाये।

उधर गोवा में आप ने यहाँ सभी 40 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे लेकिन सिर्फ दो सीट वेलिम और बेनोलिम पर ही जीत मिली।वेलिम में भी आप प्रत्याशी को जीत मात्र 169 वोट से मिली। यूं भी आप को गोवा की 40 विधानसभा सीटों पर मात्र 64354 वोट मिले। जबकि यहाँ 2017 के विधानसभा चुनावों में भी आप सभी सीटों पर चुनाव लड़ी थी,तब आप को कुल 57420 मत मिले थे। अर्थात पाँच बरसों में गोवा में कितने ही चक्कर। रैलियाँ और लगातार प्रचार करने के बाद आप इसबार सिर्फ 6934 वोट ही अपने खाते में और जोड़ पायी। जबकि भाजपा पिछली बार से भी अधिक कुल 20 सीट जीतकर, तीसरी बार लगातार अपनी सरकार बनाने में सफल रही।  इससे साफ है कि आप के लिए तो गोवा भी दूर है। इस सबके बावजूद आप अब गुजरात और हिमाचल के साथ दिल्ली नगर निगम के आगामी चुनाव में उतरकर जीत के हसीन सपने देख रही है। लेकिन केजरीवाल ने सदन में कश्मीरी पंडितों की पीड़ा की खिल्ली उड़ाकर स्वयं अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मार ली है।


(प्रसिद्ध समाचार पत्र हरिभूमि में अप्रैल 2022 को सभी संस्करण में प्रकाशित मेरा लेख )

प्रदीप सरदाना    

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