अमृत महोत्सव से बदलेगा रंगमंच का परिदृश्य
- प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार एवं
फिल्म समीक्षक
आज़ादी के अमृत महोत्सव के
बहाने देश बरसों बाद रंगमंच के रंगों से महक उठेगा। देश का सबसे प्रतिष्ठित ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ पहली बार नाटकों को
व्यापक स्तर पर, देश में दूर दूर तक ले जाने की बड़ी तैयारी
में है। इस नाट्योत्सव से ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के आयोजन में रंगमंच अपना विशिष्ट योगदान तो देगा ही। साथ ही साइबर
क्राइम की रोकथाम और जागरूकता में भी अहम भूमिका निभाएगा। इतना ही नहीं कुछ नाटक रक्त
दान के लिए प्रेरित करने के साथ लोगों को उन स्वतन्त्रता सेनानियों के बलिदान का
भी स्मरण कराएंगे, जिन्होंने देश के लिए शहीद होकर अपना खून
बहा दिया था।
आज़ादी से पहले देश ने वह
दौर अच्छे से देखा है,जब गांवों से शहरों,महानगरों तक नाटक-नौटंकियों की धूम थी। नाटक मनोरंजन का बड़ा माध्यम होने
के साथ,जन जागरूकता के मामले में भी अग्रणी थे।आज़ादी के
आंदोलन में कई नाट्य समूहों के साथ आमजन भी जगह जगह नाटक-नाटिकाएँ करके लोगों को
आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित करते थे। यह सब देखते हुए बहुत सी
नाट्य मंडलियों को भी अंग्रेजों के अत्याचार का शिकार होना पड़ा। यहाँ तक तब कई
नाटकों पर तो प्रतिबंध लगा दिया गया था। ‘आज़ादी के
अमृतमहोत्सव’ के इस नाट्य आयोजन में ऐसे कुछ प्रतिबंध नाटकों
का प्रदर्शन भी दर्शक देख सकेंगे।
यूं हम रंगमंच के इतिहास
को देखें तो भारत में रंगमंच वैदिक काल से है। संस्कृत के कुछ प्राचीन ग्रन्थों से
लेकर कौटिल्य के अर्थशास्त्र तक भी ऐसे संकेत मिलते हैं कि प्राचीन भारत में नाट्य
जन जन का अभिन्न अंग था। ‘महाभारत’
ग्रंथ में भी रंगशाला का उल्लेख है। ऋग्वेद के कुछेक हिस्सों में यम और यमी,पुरुरवा और उर्वशी आदि के कुछ संवाद हैं। ऐसा भी माना जाता है कि नाट्य की
उत्पत्ति हमारे चारों पावन वेदों के माध्यम से ही हुई। विश्वकर्मा ने सर्वगुण
सम्पन्न रंग मंडप का निर्माण किया। ऋग्वेद से कथोपकथन,सामवेद
से गायन,यजुर्वेद से अभिनय और अथर्ववेद से रस को लेकर नाट्य
बना। हमारे भरत मुनि द्वारा रचित 36 अध्यायों का ‘नाट्य
शास्त्र’,जो विश्व का सबसे प्राचीन नाट्य ग्रंथ है। उसके
प्रथम अध्याय का निम्न श्लोक भी इस कथन की पुष्टि करता है-
जग्राह पाठ्यं ऋग्वेदात सामभ्यो गीतमेव च।
यजुर्वेदादभिनयां रसानाथर्वणादपि
यह सब देख भी कहा जा सकता है
कि नाट्य की उत्पत्ति और विकास सबसे पहले भारत में ही हुआ होगा।
भारत के कुछ प्राचीन
खंडहरों में भी रंगमंच के अवशेष मिलते हैं। हालांकि मुगल काल में भारतीय नाट्य कला
ध्वस्त सी हो गयी। क्योंकि मुगल शासकों ने कुछ कलाओं को तो काफी प्रोत्साहित किया
लेकिन नाट्य कला को नहीं। इसलिए मुगल शासन के दौरान नाट्य कला लुप्त सी होती चली
गयी। लेकिन रामलीला आयोजन और फिर अंग्रेजों के शासन में यूरोपीय थिएटर के आगमन से
भारत में नाट्य कला पुनः अस्तित्व में आ गयी। तभी पारसी थिएटर से पृथ्वी थिएटर ने
आज़ादी से पहले और बाद में देश के विभिन्न हिस्सों में नाटक आयोजित करके इस प्राचीन
कला को फिर से लोकप्रिय भी बना दिया।
देश स्वतंत्र होने के बाद
भारत सरकार ने रंगमंच के महत्व को समझते हुए 1959 में दिल्ली में ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ (एनएसडी) की स्थापना की।
रानावि ने जहां रंगमंच को आधुनिक और भव्य रंग दिये। वहाँ कई अच्छे रंगकर्मी भी इस
विद्यालय ने दिये। लेकिन जब यहाँ के कुछ छात्र रंगमंच की जगह फिल्मों में पहुँच लोकप्रिय
होने लगे तो लगा कि क्या यह संस्थान रंगमंच से ज्यादा फिल्मों का होकर रह जाएगा !
हालांकि बाद में कुछ ऐसा हुआ कि सन 1990 के बाद यहाँ के छात्रों का फिल्मों में पहले
जैसा स्वागत नहीं हुआ। यूं रानावि अपने प्रांगण में अपनी कई शानदार नाट्य
प्रस्तुति तो करता रहा। लेकिन कहीं न कहीं यह भी लगा रानावि की स्थापना जिन
उद्देश्यों के लिए हुई क्या वे उद्देश्य पूरे हो पाये हैं ?
क्योंकि देश भर में लोगों में नाट्य प्रेम की जो अविरल धारा बहनी चाहिए थी वह नहीं
बही। बल्कि सिनेमा,टीवी और मनोरंजन के कई अन्य साधनों के
चलते रंगमंच नेपथ्य में चला गया।
इधर अब ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ ने,
केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत, देश भर में नाटकों
के आयोजन का जो बड़ा अभियान आरंभ किया है,उससे फिर से शहरों
से गांवों तक नाटकों की गूंज सुनाई दे सकेगी। असल में रानावि के निदेशक प्रोफेसर
रमेश चंद्र गौड़ ने आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष में जून,
जुलाई और अगस्त के इन तीन महीनों में कुछ ऐसे नाट्योत्सवों का आयोजन किया है, जिनसे देश में रंगमंच का परिदृश्य बदल सकता है।
इन नाट्योत्सव में पहला
आयोजन 8 से 17 जून तक चलेगा। इसके अंतर्गत देश भर में 75 स्थानों पर 75 नाटकों का मंचन
होगा। इस पहले चरण में उत्तर प्रदेश,हरियाणा,झारखंड,गुजरात,तेलंगाना,आंध्र प्रदेश और असम जैसे 7 राज्यों को चुना गया है। बड़ी बात यह है कि ये
नाटक साइबर क्राइम जैसे ज्वलंत विषय पर होंगे। लोगों को इन नाटकों से साइबर क्राइम
के प्रति इस प्रकार जागरूक किया जाएगा,जिससे इस अपराध पर
लगाम कस सके। इस आयोजन में रानावि ने ‘ज्वाइंट साइबर क्राइम
कोओर्डिनेशन टीम’ को अपने साथ जोड़ा है।
इसके अतिरिक्त 14 जून को ‘विश्व रक्तदान दिवस’ के मौके पर भी देश के विभिन्न
हिस्सों में 75 अन्य नाटक होंगे। जो लोगों को रक्त दान के लिए प्रेरित करने के साथ
साथ उन शहीदों की बलिदान भी बताएँगे,जिन्होंने आज़ादी के लिए अपना
रक्त बहा दिया।
उधर 18 जून को रानी लक्ष्मीबाई
के शहीदी दिवस पर झांसी के किले में ही रानी की शोर्य गाथा को लेकर एक विशेष नाटक
होगा। साथ ही राष्ट्रीय गीत ‘वंदेमातरम’ के रचयिता सुप्रसिद्द कवि,लेखक बंकिमचंद्र चटर्जी
के जन्म दिवस 26 जून को, उनके लिखे ‘आनंदमठ’ का मंचन कोलकाता में किया जाएगा।
फिर 26 जुलाई ‘कारगिल दिवस’ पर भी कारगिल में ही नाट्य मंचन का
विशेष आयोजन है। प्रो॰ गौड़ के अनुसार -‘’26 जुलाई से पहले
दिल्ली के ‘नेशनल वार मेमोरियल’ पर भी
एक नाटक करके सेना के शौर्य,साहस और बलिदान को लोगों को
दर्शाने का प्रयास रहेगा।‘’
साथ ही 14 जुलाई से 14
अगस्त तक ‘आज़ादी के हीरो’ नाम से 30
नाटकों का एक और उत्सव होगा। जिसमें विभिन्न राज्यों में प्रतिदिन एक नाटक का मंचन
होगा। इन सभी नाटकों के साथ 9 अगस्त को जलियाँवाला बाग,अमृतसर
में शहीद उधम सिंह पर भी एक नाटक का प्रदर्शन होगा।
प्रोफेसर रमेश गौड़ बताते
हैं-‘’यह राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के लिए एक नयी शुरुआत होगी। पहली बार हम
राष्ट्रीय स्तर पर रंगमंच के माध्यम से एक व्यापक जागरूक अभियान कर रहे हैं। इन
नाटकों में अधिकतर नाटक एनएसडी की अपनी प्रॉडक्शन होंगे। जिनमें ‘गुमनाम सितारे’ और ‘खूब लड़ी
मर्दानी’ जैसे कुछ हमारे पुराने नाटक भी होंगे। जबकि अधिकतर
नाटक नए हैं, जिनके लिए हमने विषय के अनुरूप विशेष पटकथा
तैयार कराई है। मैं समझता हूँ ये नाट्योत्सव सिर्फ आज़ादी के अमृत महोत्सव तक ना
चलकर, आगे भी चलते रहेंगे। कई राज्य हमारे इस अभियान को
देखकर अगस्त के बाद भी अपने यहाँ ऐसे नाट्योत्सव का अनुरोध कर रहे हैं। जो लोगों
को विभिन्न मुद्दों पर शिक्षित भी कर सकें, जागरुक भी।‘’
असल में डॉ गौड़, पिछले काफी समय से ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला
केंद्र’ के डीन के रूप में भी देश भर में कला-संस्कृति के
विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कराते आ रहे हैं। उनके इस लंबे अनुभव से जहां देश में
रंगमंच की टूटती साँसों को ऑक्सीज़न मिल सकेगी। वहाँ इससे रानावि के छात्र और नाटक
भी अपने सीमित दायरे से निकल, देश के कोने कोने में पहुंच
सकेंगे। साथ ही इससे रंगमंच का महत्व तो
बढ़ेगा ही, ‘राष्ट्रीय नाट्य
महाविद्यालय’ को एक नयी दिशा भी मिल सकेगी।
(प्रसिद्ध समाचार पत्र ‘स्वदेश’ में 8 जून 2022 को सभी
संस्करणों में प्रकाशित मेरा लेख)
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