द्रौपदी के राष्ट्रपति प्रत्याशी बनने से संकट में विपक्ष

 

- प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं विश्लेषक  

भारतीय जनता पार्टी-राजग ने जानी मानी आदिवासी महिला नेता द्रौपदी मुर्मु को राष्ट्रपति चुनाव में, अपना प्रत्याशी बनाकर, किसी आदिवासी को राष्ट्रपति बनाने की राह प्रशस्त कर दी है। साथ ही भाजपा के इस कदम से समूचा विपक्ष भी सकते में आ गया है। विपक्ष कुछ देर पहले यशवंत सिन्हा को अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर,अपनी संयुक्त विपक्ष की एकता का दम भर रहा था। लेकिन द्रौपदी मुर्मु के आने से अब विपक्ष के सामने बड़ा धर्म संकट खड़ा हो गया है।

पिछले कुछ बरसों में कुछ लोग यह इच्छा जताते रहे हैं कि भारत में अब किसी आदिवासी को राष्ट्रपति बनाना चाहिए। क्योंकि भारत के इस शिखर पद पर दो बार दलित, तीन बार मुस्लिम, एक बार सिख और एक बार महिला सहित भारत के पूर्व,पश्चिम,उत्तर,दक्षिण के व्यक्ति राष्ट्रपति बनते रहे हैं। लेकिन आदिवासी समुदाय से अभी तक कोई राष्ट्रपति नहीं बना।

अब यदि विपक्ष द्रौपदी मुर्मु का समर्थन न करके यशवंत सिन्हा के साथ खड़ा रहता है तो इससे यही संदेश जाएगा कि विपक्ष आदिवासियों के कल्याण और उत्थान की तो बहुत बातें करता हैं। लेकिन जब देश में पहली बार किसी आदिवासी महिला के राष्ट्रपति बनने की राह बनी तो समूचे विपक्ष ने उसका विरोध किया। इसके चलते विपक्ष को, लोकसभा संसदीय क्षेत्र की 47 आदिवासी आरक्षित संसदीय क्षेत्रों के मतदाताओं के साथ देश के कुल 10 करोड़ से अधिक आदिवासियों की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। जिससे विपक्ष को गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों के साथ 2024 के लोकसभा चुनावों में भी इससे भारी नुकसान हो सकता है।

यूं भाजपा-राजग अपने प्रत्याशी को राष्ट्रपति चुनाव जीताने में अपने दम पर भी काफी हद तक सक्षम है। इस 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में देश की विभिन्न विधानसभाओं कुल 4033 विधायक,लोकसभा के 543 और राज्यसभा के कुल 233 अर्थात कुल 776 सांसद अपना मतदान करेंगे। राष्ट्रपति चुनाव की प्रणाली  के अनुसार इन सभी विधायकों के मतों का कुल वोट मूल्य 543231 और कुल सांसदों के मतों के मूल्यों के अनुसार कुल वोट 543200 होते हैं। दोनों के मिलाकर 1086431 वोट हुए। एनडीए के पास इसमें से 48 प्रतिशत से कुछ अधिक वोट हैं। जबकि जीत के लिए उसे 50 प्रतिशत वोट की जरूरत है। आंकड़ों में बात करें तो इससे एनडीए को विजय के लिए कुल करीब 13 हज़ार वोट की आवश्यकता अन्य दलों से पड़ेगी।

जबकि अकेले वाईएसआर कांग्रेस जिनके पास 43500 वोट हैं के समर्थन से एनडीए अपने प्रत्याशी को आसानी से विजय दिला सकता है। इसके प्रमुख जगन मोहन रेड्डी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलकर अपना समर्थन पहले ही दे चुके हैं।

उधर ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजू जनता दल के करीब 31700 मतों का समर्थन भी एनडीए को मिल सकेगा, इसका संकेत नवीन पटनायक के 21 जून के अपने उस ट्वीट में भी दिया। जिसमें पटनायक ने द्रौपदी मुर्मु को एनडीए का राष्ट्रपति प्रत्याशी बनने पर बधाई दी है। साथ ही इस संबंध में पीएम मोदी से चर्चा का उल्लेख और खुशी ज़ाहिर करते हुए, इसे ओडिसा के लिए गर्व का क्षण बताया है। 

जबकि इससे पहले यशवंत सिन्हा को विपक्ष का उम्मीदवार बनाने से कुछ ऐसे संकेत आ रहे थे कि सिन्हा के पटनायक से पुराने मधुर संबंध रहे हैं। इसलिए वह यशवंत सिन्हा को समर्थन दे सकते हैं। लेकिन अब जब एनडीए ने द्रौपदी को अपना प्रत्याशी बनाया है तो पटनायक ने साफ शब्दों में उनके समर्थन की घोषणा कर दी है।

ज़ाहिर है द्रौपदी मुर्मु का जन्म तो ओडिसा के मयूरभंज जिले में हुआ ही, उनके राजनीति करियर की शुरुआत भी रायरंगपुर नगर पंचायत से पार्षद के रूप में हुई। साथ ही वह ओडिसा में मंत्री भी रह चुकी हैं। इसलिए पटनायक यदि अब अपने राज्य की महिला आदिवासी नेता द्रौपदी को समर्थन नहीं करते तो वह उनकी अच्छी छवि के साथ उनके अपने राजनीतिक करियर के लिए बड़ी क्षति होती।

हालांकि जिस प्रकार अब पहली बार कोई आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनने के लिए मैदान में हैं तो उनका चयन निर्विरोध होता तो अच्छा होता। जिस प्रकार एक आदिवासी को राष्ट्रपति बनाने की बात उठती रही है। उसी प्रकार यह इच्छा भी कई बार प्रकट होती रही है कि राष्ट्रपति का चयन निर्विरोध हो तो बेहतर रहेगा।

दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में भी कहा था कि राष्ट्रपति का चयन सभी की सहमति से होना चाहिए। यहाँ तक जब अपने कार्यकाल में पहली बार वाजपेयी ने किसी राजनैतिक व्यक्ति के स्थान पर एक वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम को,राष्ट्रपति का प्रत्याशी बनाने की एक नयी और बड़ी पहल पेश की, तब भी उनकी मंशा थी कि उनके नाम पर तो सभी की सहमति होनी ही चाहिए। लेकिन तब भी वामपंथी दलों ने कलाम को समर्थन न देकर, लक्ष्मी सहगल को अपना उम्मीदवार बनाकर उनके सामने चुनाव में उतार दिया था।

देश में राष्ट्रपति चुनावों के इतिहास पर नज़र डालें तो 1950 से 1922 तक इस शिखर पद पर 14 व्यक्ति आसीन हो चुके हैं। लेकिन राष्ट्रपति का निर्विरोध चयन सिर्फ एक बार सन 1977 में नीलम संजीव रेड्डी के समय हुआ। जब केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार थी। जबकि इससे  पहले और बाद में भी निर्विरोध चयन के कुछ प्रयास तो हुए लेकिन यह संभव हो नहीं सका। यहाँ तक पिछले राष्ट्रपति चुनावों में भी मोदी सरकार ने निर्विरोध राष्ट्रपति बनाने के भरसक प्रयास किए थे।

हालांकि अच्छा वही है कि जब भी, ज़रा भी संभव हो पक्ष-विपक्ष दोनों को मिलकर एक नाम पर सहमति बनानी चाहिए। यूं चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुसार कोई भी दल अपने सदस्यों को अपने पसंद के प्रत्याशी को वोट देने का व्हिप जारी करके बाध्य नहीं कर सकता। फिर भी राष्ट्रपति चुनाव में सदस्यों की संख्याओं के अनुसार जो मत बनते हैं उनमें कोई बड़ा परिवर्तन अक्सर होता नहीं है। इसलिए गेंद किसके पाले में है,यह चुनाव से पहले अधिकतर स्पष्ट हो जाता है। जैसे इस बार भी जिस तरह वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल, द्रौपदी मुर्मु को अपना समर्थन देने को तैयार हो गए हैं, उससे उनकी प्रबल स्थिति स्पष्ट हो गयी है।

सन 2017 में रामनाथ कोविन्द के समय भी उन्हें विजयी बनाने के लिए सत्तापक्ष के पास करीब 17 हज़ार मतों की कमी थी। लेकिन तब भी वाईएसआर और बीजद सहित कुछ और दलों ने उन्हें अपना समर्थन दे,उनकी विजय पहले ही निश्चित कर दी थी। इसलिए ऐसे में इस अत्यंत गरिमामय पद के लिए,सिर्फ विरोध में सामने प्रत्याशी उतारना या शौकिया राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की प्रवृति से बचा जा सके तो आदर्श उदाहरण प्रस्तुत हो सकेंगे।  

इधर इस बार जहां विपक्ष ने अपने संयुक्त प्रत्याशी के रूप में शरद पवार, फारुख अब्दुल्ला, गोपाल कृष्ण गांधी और एचडी देवेगोड़ा को प्रत्याशी बनाना चाहा। लेकिन इन चारों ने मना कर दिया। उधर भाजपा ने भी आनंदी बेन, अनुसूइया उइके, थावर चंद गहलोत, निर्मला सीतारमण के साथ उपराष्ट्रपति वेंकैया नायड़ू सहित कुछ और नामों पर विचार किया था। लेकिन अंतिम निर्णय द्रौपदी मुर्मु के नाम पर हुआ। बता दें पाँच साल पहले भी द्रौपदी का नाम राष्ट्रपति के लिए सुर्खियों में आया था। लेकिन तब निर्णय वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के पक्ष में हुआ।

इधर अपने जन्म दिन 20 जून को जीवन के 64 वें वर्ष में प्रवेश करते ही, 21 जून को साल के सबसे बड़े दिन द्रौपदी मुर्मु को जो उपहार भाजपा ने दिया है, वह उनके जीवन का सबसे बड़ा दिन बन गया है। लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में वह दिन और भी बड़ा होगा जब राष्ट्रपति का चयन सर्वसम्मति से निर्विरोध होने की बड़ी मिसाल पेश हो सकेगी।

(प्रसिद्ध समाचार पत्र ‘हरिभूमि’ में 24 जून 2022 को सभी संस्करण में प्रकाशित मेरा लेख )

प्रदीप सरदाना    

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